लोकसभा चुनाव: नई सरकार के गठन में पांच क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम

 नई दिल्ली।
 
लोकसभा चुनावों के चार चरण पूरे हो चुके हैं पर अभी तीन बाकी हैं। अभी तक के आकलन के अनुसार किसी दल के पक्ष या विरोध में लहर नहीं है। इसलिए चुनाव बेहद रोचक हो गया है। सबकी नजरें चुनाव नतीजों पर लगी हैं। राजनीतिक इस चुनाव में दो राष्ट्रीय गठबंधन एनडीए और यूपीए आमने-सामने हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इनमें से किसी गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो पांच क्षेत्रीय दलों की भूमिका सरकार गठन में निर्णायक हो सकती है।

इन पांच दलों में उत्तर प्रदेश से सपा-बसपा, तेलंगाना से टीआरएस, ओडिशा से बीजद तथा आंध्र प्रदेश से वाईएसआर कांग्रेस शामिल हैं। ये पांच दल अभी एनडीए या यूपीए से नहीं जुड़े हैं। चुनाव नतीजों के बाद इनका क्या रुख होगा, यह भी स्पष्ट नहीं है। यह भी माना जा रहा है कि यह मौका पड़ने पर किसी भी गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। इसलिए इन पांच दलों की भूमिका बेहद अहम होने जा रही है।
 
इन पांच दलों के पास पिछले लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें नहीं थी। लेकिन इन चुनावों में इनकी सीटें 80-90 के बीच रहने की संभावना है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के चलते उनकी सीटों में पिछले चुनाव के मुकाबले खासा इजाफा होगा। तेलंगाना में टीआरएस, ओडिशा में बीजद तथा आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस का प्रदर्शन इस बार भी अच्छा रहने की उम्मीद है। इन पांच दलों की झोली में 80-90 लोकसभा सीटें आने की संभावना है। ऐसे में नई सरकार के गठन में ये सीटें निर्णायक होंगी।

इन चार राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत
जिन चार राज्यों उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा ओडिशा में इनका आधार है, वहां लोकसभा की कुल 143 सीटें हैं। इन पांच दलों को पिछले चुनाव में महज 44 सीटें मिली थीं। जिनमें बीजद को 20, टीआरएस को 11, वाईएसआर कांग्रेस को नौ तथा सपा की चार सीटें शामिल हैं। बसपा कोई सीट नहीं जीत पाई थी। जबकि इन 143 सीटों में से भाजपा के पास अकेले 75 सीटें आई थीं। उस समय टीआरएस एनडीए का हिस्सा थी और उसने दस सीटें जीती थीं। उप्र में दो सीट एनडीए के घटक अपना दल को मिली थीं। इस प्रकार 87 सीटें एनडीए के खाते में थी।
 
टीआरएस के एनडीए में जाने की संभावना अधिक
राजनीतिक जानकारों के अनुसार टीआरएस प्रमुख केसीआर राव हालांकि गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी मोर्चे की वकालत करते रहते हैं। लेकिन असल में वह किसी भी गठबंधन को समर्थन कर सकते हैं। चूंकि उनके प्रतिद्वंद्वी चंद्रबाबू नायडू यूपीए के साथ हैं, इसलिए उनके एनडीए के साथ जाने की संभावना ज्यादा है। इसी प्रकार बीजद एनडीए की पुरानी साथी रही है। वाईएसआर कांग्रेस इन दिनों टीआरएस की करीबी है। जबकि सपा-बसपा भी एक साथ हैं और यूपीए से दूरी बनाए हुए हैं। हालांकि मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता के समर्थन में दोनों खड़ी नजर आती हैं।

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