ललाट पर तिलक क्यों ?

तिलक
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ललाट पर तिलक क्यों ?

‘कठोपनिषद्’ में तिलक धारण विधि के संदर्भ में नाड़ी का वर्णन इस तरह किया गया है-हृदय की नाड़ियों में से सुषुम्ना नामक नाड़ी मस्तक के सामने वाले हिस्से से निकलती है। इस नाड़ी से ऊर्ध्वगतीय मोक्ष मार्ग निकलता है। अन्य सभी नाड़ियां प्राणोत्क्रमण के बाद चारों दिशाओं में फैल जाती हैं मगर सुषुम्ना का मार्ग ऊर्ध्व दिशा की ओर ही रहता है। जिस मार्ग से सुषुम्ना का ऊर्ध्व भाग स्पष्ट रूप से दिखाई दे, ऐसी गहरी रेखा प्रत्येक व्यक्ति के ललाट पर होती है। सुषुम्ना नाड़ी को केंद्रीभूत मानकर अपने-अपने संप्रदायों के अनुसार ललाट पर विविध प्रकार के तिलक धारण किए जाते हैं। चंदन का लेप सुषुम्ना पर लगाने से अध्यात्म के लिए अनुकूल विशिष्ट प्रक्रिया होती है। नासिका से प्रवाहित होने वाली दो नाड़ियों में से बाईं नाड़ी पिंगला धन और दाईं नाड़ी इड़ा कण होती है। धन विद्युत बहते समय उत्पन्न उष्णता को रोकने के लिए सुषुम्ना पर तिलक लगाना बहुत उपयोगी रहता है।
इस कारण तिलक लगाया जाता है -शास्त्र अनुसार

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