राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान दिए जाने के कारण विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिले सीमित परिणाम?

 
नई दिल्ली

कुछ ही महीनों पहले लोकसभा चुनावों में बंपर जीत हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए हालिया विधानसभा चुनाव और उप-चुनाव के नतीजे उतने उत्साहित करने वाले नहीं रहे जितने की उम्मीद की जा रही थी। गुरुवार को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने जितनी बंपर जीत की उम्मीद की थी, पार्टी उससे काफी पीछे रह गई है।
महाराष्ट्र में पार्टी ने यह उम्मीद की थी कि उससे पिछली बार से ज्यादा सीटें मिलेंगी लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार बीजेपी की सीटें घट गईं। यही हाल हरियाणा में भी हुआ जहां 'इस बार 70 पार' का नारा बीजेपी ने दिया था, वहां भी उसे केवल 40 सीटों से संतोष करना पड़ा और पार्टी बहुमत के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सकी।

हालांकि इसे बीजेपी की असफलता तो नहीं कहा जा रहा है क्योंकि दोनों ही राज्यों में पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में दिख रही है। लेकिन यह सवाल जरूर उठ रहा है कि क्या राज्यों में पार्टी का 'राष्ट्रवाद' का मुद्दा उतना मजबूत नहीं बन पा रहा है जितना लोकसभा चुनावों में बना था? लोकसभा चुनावों के मुकाबले विधानसभा चुनावों में कम वोट मिलना बीजेपी को आत्ममंथन करने के लिए जरूर मजबूर करेगा।

ऐसा माना जा रहा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी सरकार के फैसलों को जोर-शोर से उठाए जाने की पार्टी की पॉलिसी पर लोकल मुद्दे और राजनीति भारी पड़ गई है। स्थानीय मुद्दों के अलावा शायद बीजेपी का राज्यों में जातीय गणित भी इस बार उतना फिट नहीं बैठा जैसा अब से पहले के चुनावों में बैठता रहा है। अब कहा जा रहा है पार्टी स्थानीय चुनावों में पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही लोकल मुद्दों पर ज्यादा फोकस करेगी।

हरियाणा चुनावों की ही बात करें तो कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी ने राज्य की 10 लोकसभा सीटों पर बड़े मार्जिन से जीत दर्ज की थी लेकिन विधानसभा चुनावों में ऐसा नहीं हुआ। विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी ने राज्य में बनते सरकार विरोधी माहौल को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया। स्थानीय मुद्दों को साइड लाइन किया जाना ही पार्टी को लोगों से दूर करने में अहम रहा। इसके साथ ही हरियाणा में जहां लोकसभा चुनावों में जाट समुदाय ने पूरी तरह मोदी के समर्थन में वोटिंग की थी, वहीं विधानसभा चुनावों में जाटों द्वारा बिल्कुल किनारे किए जाने से भी पार्टी चौंक गई है।

हालिया विधानसभा चुनावों ने विपक्षी खेमे में भी कुछ जान डाल दी है। महाराष्ट्र में एनसीपी के प्रदर्शन ने सभी को हैरान कर दिया है और इसी तरह हरियाणा में भी कांग्रेस ने बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले इस बार अच्छा खासा मुकाबला दिया है। इसका असर 18 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में भी देखने को मिल सकता है। माना जा रहा है कि आगामी सत्र में विपक्ष जोरदार तरीके से सरकार को आर्थिक सुस्ती के ऊपर सदन में घेर सकता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आगामी झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में पार्टी की क्या रणनीति रहती है।
 

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