राजधानी की एकमात्र टॉक्सिकोलॉजी लैब दो साल से बंद, दो साल से खाली है पद

भोपाल
भोपाल गैस कांड में जहरीली गैस और मरीजों के शरीर में मौजूद जहर की जांच में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली भोपाल की एकमात्र टॉक्सिकोलॉजी लैब दो साल से बंद है। हमीदिया अस्पताल में स्थित इस लैब के बंद होने की वजह से अब जहरखुरानी, आत्महत्या के प्रयास सहित जहरीले कीडों के काटने से घायल मरीजों का इलाज अंदाजे से हो रहा है। जहर के कारण हुई मौतों के मामलों की जांच  के लिए अब भोपाल के बजाय सागर सेंपल भेजे जा रहे हैं। इससे रिपोर्ट देरी से मिल पा रही है।

दरअसल हमीदिया अस्पताल के एकमात्र टॉक्सिक एक्सपर्ट डॉ. विमल शर्मा दो साल पहले रिटायर हो चुके हैं। इसके बाद विभाग ने इस पद पर नियुक्ति ही नहीं की। गौरतलब है कि हमीदिया अस्पताल में जहर खुरानी के हर रोज दो से तीन मामले पहुंचते हैं। वहीं सप्ताह में दो तीन लोगों की मौत जहर खाने से होती है। बता दें कि प्रदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में यह पहली लैब है, जहां जहर की जांच सुविधा है।

हमीदिया अस्पताल में टॉक्सिकोलॉजी लैब की स्थापना के बाद से विशेषज्ञ डॉक्टर रिटायर होते गये और लैब बंद हो गई। वर्ष 2009 में 10 लाख रुपए के पॉलीमर चेन रिएक्शन (पीसीआर) व अन्य उपकरण खरीदे गए। लेकिन एक्सपर्ट डॉ. विमल शर्मा के रिटायर होने के बाद यह लैब बंद पड़ी है। इस लैब का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जहर की फौरन जांच कर मरीज को सटीक उपचार दिया जा सकता है।

मामले में मेडिको लीगल संस्थान के अधिकारी बताते हैं कि टॉक्सिकोलॉजी लैब नहीं होने से पीएम रिपोर्ट में दिक्कत तो आती है। ऐसे मामलों में हमारे पास बिसरा जांच के लिए सागर लैब भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यहां जांच की सुविधा होने से एक दिन में रिपोर्ट मिल जाती। रसायनिक परीक्षक की संविदा नियुक्ति के लिए शासन से कई बार पत्राचार करने पर कोई समाधान नहीं निकल सका। न किसी की नियुक्ति हो सकी।

सबसे बड़ी दिक्कत जहर खाए मरीज के उपचार में होती है। हमीदिया अस्पताल के मेडिसिन विभाग केडॉक्टर्स के मुताबिक हर जहर का इलाज अलग होगा है। ऐसे में जांच के बाद जहर का पता चलने पर इलाज करना आसान हो जाता है। लेकिन जांच नहीं होने पर मरीज के लक्षण के आधार पर इलाज करना पड़ता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक जहर हीमोटॉक्सिक और न्यूरोटॉक्सिक होते हैं। दोनों तरह के जहर में इलाज एक दूसरे से भिन्न होता है। जहर का इलाज भी जहर से ही होता है, ऐसे में गलत इलाज मरीजों की जान भी ले सकता है।

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