राइट टू वॉटर एक्ट का लागू होने से पहले ही शुरू हुआ विरोध, सरकारी विभागों ने जताई आपत्ति

भोपाल
कमलनाथ सरकार (Kamal Nath Government) की प्रदेश के हर व्‍यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर पानी देने की योजना का मसौदा सही रूप से अमल में आया नहीं है कि उससे पहले ही राइट टू वॉटर एक्ट (Right to water Act) का विरोध होना शुरू हो गया है. दरअसल, एक्ट का पालन ना करने वालों को दंडित करने का प्रावधान किया गया है और इस राइट टू वॉटर एक्ट में अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जा रही है. हैरानी की बात ये है कि अधिकारियों को ये जिम्‍मेदारी तय करने का तरीका रास नहीं आ रहा है.

पानी का अधिकार देने के लिए कमलनाथ सरकार की प्लानिंग जोर से चल रही है, लेकिन इस प्लानिंग को सरकारी विभाग के अधिकारी ही पलीता लगा रहे हैं. सरकार इस योजना को एक तरफ अनुशासित रखना चाहती है, तो वहीं दंड के प्रावधान पर सरकारी विभाग आपत्ति जता रहे हैं. इन सब के बीच सरकार ये भी तय नहीं कर पा रही है कि पानी की इस बड़ी व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सरकारी अमले को किस तरह से जवाबदेह बनाया जाए.

जबकि कांग्रेस मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि जल निगम या फिर संबंधित विभाग की जिम्‍मेदारी है कि लोगों को पीने का पानी मिले. अगर ऐसा नहीं होता है तो अधिकारी को सजा मिलनी चाहिए. इसमें गलत बात कुछ भी नहीं है.

पानी के अधिकार कानून के मसौदे में ये भी लिखा हुआ है कि अच्छा काम करने वालों को पुरस्कृत किया जाएगा, लेकिन सरकारी विभागों के इस रवैये पर बीजेपी हमलावर हो चुकी है. बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा कि अधिकार देने से काम नहीं चलता बल्कि सरकार को भी अपने कर्तव्‍यों का निर्वहन करना चाहिए. ये कागजी कार्रवाई तो खूब कर रहे हैं, लेकिन जल प्रबंधन को लेकर कुछ भी नहीं कर रहे हैं. यकीनन ये सरकार बतोलेबाजी कर रही है. जबकि अधिकारियों को डराने या फिर धमकाने से कुछ नहीं होगा.

तर्क दिया गया है कि राइट टू वॉटर का बड़ा काम सरकार करने जा रही है, इसलिए इसमें सकारात्मक भाव ही होना चाहिए. किसी भी किस्म की नकारात्मकता से बचना चाहिए. जबकि जिम्मेदार विभागों को लगता है कि दंड के प्रावधान से इस काम से जुड़ा सरकारी अमला दबाव में आ जाएगा. उसे हमेशा ये डर रहेगा कि कहीं किसी और की सजा उसके हिस्से में तो नहीं आ जाएगी. ऐसे में एक्ट का मसौदा कब तक और कैसा बनेगा इस पर सरकार भी कन्फ्यूजन में हैं.

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