यहां ‘लहर’ कराती है बेड़ा पार, वोट प्रतिशत से नहीं पड़ता फर्क़
भोपाल
देश के किसी भी स्टेट में चुनाव का गणित कुछ भी हो, मध्यप्रदेश में तो हार जीत का फैसला ‘लहर’ ही करती है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी लहर के कारण बीजेपी ने 54 फीसदी वोट लेकर 27 सीटें जीत ली थीं, जबकि कांग्रेस को 34 प्रतिशत वोट मिले. इसके बावजूद वो केवल दो सीट ही जीत पायी.
मध्यप्रदेश की झाबुआ सीट उपचुनाव में कांग्रेस ने जीती थी.ये सीट पहले मोदी लहर में बीजेपी ने जीती थी. बाद में मोदी लहर कम हुई तो झाबुआ सीट के उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया जीते, जिसकी वजह से कांग्रेस की प्रदेश में तीन सीट हो गयीं.इसके पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 प्रतिशत और बीजेपी को 43 प्रतिशत वोट मिले थे.कांग्रेस से तीन फीसदी वोट ज्यादा मिलने के बाद भी बीजेपी 16 सीटें जीती और कांग्रेस के हिस्से में 12 सीट आयी थीं.यानी जब भी वोट शेयर दो से तीन प्रतिशत इधर से उधर हुआ तो हार जीत में ज्यादा अंतर नहीं आया.हाल के विधानसभा चुनाव में हार-जीत के कुछ इसी तरह के समीकरण सामने आए थे.
वोट प्रतिशत
2014
बीजेपी 54% 27
कांग्रेस 34% 02
2009
बीजेपी 43% 16
कांग्रेस 40% 12
2004
बीजेपी 48% 25
कांग्रेस 34% 04
1999
बीजेपी 46% 29
कांग्रेस 44% 11
1998
बीजेपी 45% 30
कांग्रेस 39% 10
बीते कई चुनावों से बीजेपी ने दमदारी के साथ चुनाव लड़ा और ज्यादा सीटें जीत लीं.2014 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर के कारण बीजेपी 27 सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन अब चुनाव में मोदी लहर का असर कम है. विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर सरकार बनाई, वहीं बीजेपी 109 सीट ही जीत सकी, जबकि दोनों ही पार्टियों का वोट शेयर एक-दूसरे के आसपास ही था.
इस बार मोदी लहर नहीं है. अधिकांश सीटों पर कांटे की टक्कर है कहीं-कहीं मौजूदा सांसदों का विरोध भी है. मुरैना, भिंड, ग्वालियर, सागर, टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट, होशंगाबाद, राजगढ़, देवास, उज्जैन, मंदसौर, धार, खरगोन, खंडवा और बैतूल सीट पर कांग्रेस मजृबूत स्थिति में है.इन किलों को बचाना बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.