मौसम की मार झेल रहे खास आम, बढ़ेंगे दाम

नई दिल्ली
दशहरी, लंगड़ा, केसर, हापुस सहित आम की ज्यादातर लोकप्रिय किस्मों की पैदावार लगातार दूसरे साल कई वजहों से घटने जा रही है। ये जहां रिटेल मार्केट में तय समय से करीब तीन हफ्ते देरी से आएंगे, वहीं इनकी कीमत भी बढ़ सकती है। तेजी से बदलते मौसम, औद्योगिक प्रदूषण और बीमारियों के चलते देश के ज्यादातर मैंगो बेल्ट्स में आम की फसल प्रभावित हुई है।

सालाना 45 लाख टन आम पैदा करने वाले यूपी में आम के राजा मलीहाबादी दशहरी की हालत ठीक नहीं है। ऑल इंडिया मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट इंसराम अली ने बताया, ‘इस साल उत्पादन संभावित स्तर से 60% कम रहने के आसार हैं। जाड़े के लंबा खिंचने और तापमान में भारी उतार-चढ़ाव के चलते फ्लॉवरिंग पर बुरा असर पड़ा था, लेकिन उसके बाद बीमारियों से बहुत कम फल लगे। हम उम्मीद कर रहे हैं कि शुरुआती आकलन का 30-40% फल ही मार्केट में उतर पाएगा। रिटेल में 20 जून के बाद ही असली दशहरी के दर्शन होंगे।’

अकेले मलीहाबाद में ही करीब 20,000 टन आम होता है, जिसमें 90% दशहरी होते हैं। इंसराम अली ने बताया कि फसल बीमा योजनाओं में आम को शामिल नहीं करने से किसानों के लिए कीटनाशक और खाद पर हुए खर्चे की भरपाई ही मुश्किल हो रही है। ऐसे में कम उत्पादन के चलते दाम बढ़ाना मजबूरी होगी। यूपी के 14 मैंगो बेल्ट सहित देश के ज्यादातर उत्पादन केंद्रों के संगठनों ने प्रधानमंत्री से आम के लिए क्षतिपूर्ति की मांग की है।

दिल्ली के आजादपुर मंडी में आम निर्यातक संजीव भाटिया ने बताया, ‘यूपी में दशहरी के अलावा साउथ गुजरात और महाराष्ट्र से केसर और हाफुस की आवक में भी भारी गिरावट आ सकती है। वहां इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन के चलते फूल और फल दोनों बर्बाद हुए हैं। आम तौर पर 1000 रुपये प्रति 10 किलो की दर से बुक होने वाला केसर थोक में 15-20% महंगा आने के आसार हैं। फिलहाल जो आम आ रहे हैं, उनमें वो स्वाद नहीं है, लेकिन वे महंगी दरों पर ही आ रहे हैं।’

उन्होंने बताया कि इस बार 15 मार्च तक जाड़ा खिंचने से आमों पर बौर कम लगे। आम तौर पर ट्रेडर फ्लॉवरिंग के स्तर पर ही ग्रोअर्स के साथ डील कर लेते हैं। लेकिन प्रदूषण के चलते ज्यादातर बेल्ट में फूल काले पड़ते गए और लगने वाले आम की तादाद उम्मीद से आधी रह गई। अगर आने वाले एक दो हफ्ते में भारी आंधी आ गई तो नुकसान का स्तर बढ़ सकता है। फिलहाल बाजार में आंध्र और दूसरे इलाकों से सफेदा की आवक हो रही है, जो पिछले साल के मुकाबले 20% महंगा है।

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