मुफ्ती सरकार की उस ढील का नतीजा है पुलवामा का हमला?

श्रीनगर
पुलवामा में आत्मघाती हमले में जवानों के शहीद होने के बाद उन कारणों का पता लगाने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं, जिनकी भेंट देश के 40 सपूत चढ़ गए। इन्हीं में से एक वह नियम भी है जिसमें ढिलाई के कारण सुरक्षा हल्की हो गई और भयानक हमले में जवानों को अपने प्राणों की कुर्बानी देनी पड़ी। दरअसल, 2002-03 से पहले जवानों के काफिले को कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया जाता था लेकिन 2002-2005 के बीच मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार के दौरान इन नियमों में ढिलाई कर दी गई क्योंकि आम लोगों को उससे असुविधा होती थी।

आम लोगों को न हो परेशानी, बदले नियम
पहले सुरक्षाबलों के काफिले को जिस वक्त हाइवे से निकलना होता था, सिविलियन ट्रैफिक को रोक दिया जाता था। इस दौरान एक पायलट वीइकल सिविलियन गाड़ियों को हाइवे से दूर रखने का काम करता था। इससे लोगों को असुविधा होती थी और सुरक्षा बलों की खराब छवि बनती थी। सईद सरकार ने फैसला किया कि इस नियम को खत्म किया जाए। केंद्र सरकार ने भी सईद के तर्क को सही माना और सुरक्षा ढीली कर दी गई।

बिना चेकिंग सुरक्षा पूरी नहीं
हालांकि, इसके साथ सुरक्षा में दूसरे बदलाव किए गए। अब सिविलियन गाड़ियां सुरक्षाबल की गाड़ियों के साथ निकलती थीं, लेकिन पूरे रास्ते पर IED की जांच की जाने लगी। पूरे रास्ते पर सुरक्षाबल तैनात रहते थे। सेना आतंकियों को रोकने के लिए मुस्तैद रहने लगी। हालांकि, जानकारों का मानना है कि भले ही पूरे रास्ते की जांच की गई हो, किसी गाड़ी में इतनी मात्रा में विस्फोटक होने की जानकारी तभी मिल सकती थी, अगर एक-एक गाड़ी की चेकिंग की जाती।

'सिविलियन गाड़ियों को दूर रखना ही सलूशन'
जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी और गृह मंत्रालय के सलाहकार अशोक प्रशाद का कहना है कि अब सिर्फ एक ही तरीका है कि पहले की तरह काफिले के रास्ते की कड़ी सुरक्षा की जाए। इसके लिए जब तक काफिला निकले सिविलियन गाड़ियों को सड़क से दूर ही रखा जाए। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही BSF और CRPF के लिए स्वतंत्र वायु सेवा होनी चाहिए जिससे कि उन्हें एयरलिफ्ट किया जा सके।

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