मासूम को डीएनए जांच से मिला असली मां-बाप का साया
पटना
स्टेशन से गुम होने के बाद एक संस्थान में मिले ढाई साल के मासूस को वैज्ञानिक अनुसंधान ने उसके माता-पिता से मिला दिया। यह आसान नहीं था। दो दंपतियों के बच्चे पर दावे ने पुलिस और बाल कल्याण समिति दोनों को ही मुश्किल में डाल दिया था। बच्चे के माता-पिता कौन हैं, इस उलझन को सुलझाने के लिए डीएनए जांच कराने का फैसला लिया गया। इस प्रक्रिया में भले ही कई महीने लग गए पर जांच रिपोर्ट ने बच्चे को उसके असली माता-पिता तक पहुंचा दिया।
जीआरपी ने बाद में बच्चे को ढूंढ़ निकाला था
पटना के बंकाघाट रेलवे स्टेशन पर जून 2018 में मां के साथ जा रहा मासूम गुम हो गया था। महिला वैशाली से पटना जिले में स्थित अपने मायके जा रही थी। इस संबंध में बंकाघाट जीआरपी में बच्चे के अपहण की प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। जीआरपी ने कई महीनों की तलाश के बाद पिछले साल बच्चे को ढूंढ़ निकाला। वह पटना के एक संस्थान में मिला। जीआरपी ने बच्चे को उसके घरवालों को सौंपने की पहल की तो पता चला कि औरंगाबाद के एक दंपती ने अपना संतान बताते हुए उसपर दावा किया है। दावों के आधार पर बच्चा किसी एक दंपती को नहीं सौंपा जा सकता था। मामला बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के पास पहुंचा। दंपतियों के दावे को जांचने के लिए समिति ने डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया। रिपोर्ट आने तक बच्चे को समिति के निगरानी में रखा गया।
बच्चे के साथ पांच सैंपल की हुई जांच
बच्चे के माता-पिता का पता लगाने के लिए पांच ब्लड सैंपल लिए गए। बच्चे के अलावा दावा करनेवाले दोनों दंपतियों के ब्लड सैंपल को डीएनए लैब भेजा गया। सभी ब्लड सैंपल की प्रोफाइलिंग की गई और उनके डीएनए का मिलान किया गया। इनमें वैशाली के रहनेवाले दंपती दिनेश कुमार और उमा देवी (काल्पनिक नाम) से बच्चे का डीएनए मैच कर गया। यानी बच्चे के असली माता-पिता वही थे। वहीं डीएनए रिपोर्ट के बाद दूसरे दंपती का दावा खारिज हो गया।
दोनों दंपति के बच्चे गुम हो गए थे
डीएनए रिपोर्ट के बाद मासूस को सीडब्ल्यूसी द्वारा उसके माता-पिता को सौंप दिया गया। सीडब्ल्यूसी की पटना जिला अध्यक्ष संगीता कुमारी ने बताया कि दावा करनेवाले दोनों ही दंपती के बच्चे गुम हुए थे। पुरानी फोटो के आधार पर वह बच्चे को अपना बता रहे थे, इसलिए डीएनए जांच कराने का फैसला लिया गया।