मायावती ने जिससे गठबंधन किया, उसका वोट बैंक कटा, कुछ ऐसा रहा है इतिहास

लखनऊ 
बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले सपा के साथ हुए गठबंधन को अपेक्षा अनुरूप नतीजे न आने के बाद तोड़ना आश्चर्यचकित नहीं करता. अगर उनके इतिहास के को देखें तो उनकी राजनीति कुछ ऐसी ही रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 1996 में यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. उस वक्त भी परिणाम आने के बाद गठबंधन टूट गया था. उन्होंने बीजेपी का साथ लिया और सरकार बनाई. लेकिन बीजेपी के साथ पोस्ट पोल अलायन्स भी अस्थिर ही रहा. हालत ऐसे बने कि बीजेपी को समर्थन वापस लेना पड़ा था.

कुछ ऐसे ही हालात इस बार भी बने. जब अपेक्षाकृत परिणाम नहीं आए तो मायावती ने उपचुनाव के बहाने सपा से किनारा कर लिया और अखिलेश पर यादव वोट बैंक ट्रान्सफर न करवा पाने का आरोप भी लगा दिया.

जानकार बताते हैं कि बसपा ने जिसके साथ गठबंधन किया उसके वोटबैंक पर मायावती की हमेशा नजर रही. 1995 में बीजेपी से मिलकर सरकार बनाने के बाद उन्होंने बीजेपी के कोर वोटर ब्राह्मण पर सेंध लगाई. एक समय ऐसा भी आया जब ब्राह्मण बीजेपी से छिटक कर मायावती के पाले में चला गया. परिणाम यह हुआ कि दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग कर उन्होंने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 1996 में कांग्रेस से गठबंधन करने के बाद उसका दलित वोट बैंक पूरी तरह से छिटक गया. आज भी दलित वोटबैंक को वापस लाने के लिए कांग्रेस जूझ रही है.

इस बार सपा के मुस्लिम वोटबैंक छिटकने का डर है. हालांकि मायावती कह रही हैं कि गठबंधन से उन्हें फायदा नहीं हुआ, लेकिन जानकार बताते हैं कि शून्य से 10 सेता जीतने में सपा का साथ अहम रहा है. वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं कि जिन मुस्लिम वोट बैंक की नुमाईंदगी सपा कर रही थी, अब उसकी आवाज मायावती बुलंद करती नजर आ सकती हैं. उन्होंने कहा कि मायावती की लंबे समय से कोशिश रही है कि मुस्लिम वोट अगर उनके पाले में आता है तो दलित वोट के साथ मिलकर वह विनिंग कॉम्बिनेशन हो सकता है. लोकसभा चुनाव का परिणाम भी इस बात की तस्दीक करता है. जिन 10 सीटों पर उन्हें जीत हासिल हुई है उसमें से 8 सीटों पर उसका वोट शेयर 50 फीसदी से ज्यादा रहा है.

बीजेपी के राम मंदिर आन्दोलन और बाबरी विध्वंस के बाद यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालीन बापस सुप्रीमो कांशीराम और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा. प्रचंड राम लहर में भी इस गठबंधन को जनता का समर्थन मिला और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने. लेकिन जानकार बताते हैं कि सरकार बनने के एक महीने बाद ही मायावती ने सपा के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी. आलम यह हुआ कि 1995 में मायावती ने समर्थन वापस ले लिया. जिसके बाद गुस्साए सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती पर जानलेवा हमला भी कर दिया था. इस घटना को गेस्ट हाउसकांड के नाम से जानते हैं.

मायावती ने 1995 में मुलायम सरकार गिराने के बाद बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. लेकिन स्थिति यह हुई कि बीजेपी को समर्थन वापस लेना पड़ा. इसके बाद 1997 में बीजेपी के समर्थन से वे मुख्यमंत्री बनी. लेकिन छह महीने में फिर सरकार गिर गई. 2002 में बीजेपी के समर्थन से वे एक बार फिर मुख्यमंत्री बनी. लेकिन मायावती की हठधर्मिता और दूसरी वजहों से सरकार नहीं चल सकी और बीजेपी को समर्थन वापस लेना पड़ा.

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