मायावती काल में हुए चीनी मिल घोटाले की जांच शुरू

लखनऊ
मायावती सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2010-11 में सात बंद चीनी मिलों को बेचने में हुए घोटाले में सीबीआई लखनऊ की ऐंटी करप्शन ब्रांच ने एफआईआर दर्ज की है। इसके अलावा 14 अन्य चीनी मिलों की बिक्री को लेकर 6 अलग-अलग पीई (आरंभिक जांच) दर्ज की गई हैं। यूपी सरकार ने 12 अप्रैल 2018 को 21 चीनी मिलों की बिक्री में हुई गड़बड़ियों के मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। चीनी मिलों को बेचने में हुए घोटाले के कारण प्रदेश सरकार को 1,179 करोड़ रुपये के राजस्व का घाटा हुआ था।

सीबीआई ने इस मामले में दिल्ली के रोहिणी निवासी राकेश शर्मा, सुमन शर्मा, गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी धर्मेंद्र गुप्ता, सहारनपुर निवासी सौरभ मुकुंद, मोहम्मद जावेद, बेहट निवासी मोहम्मद नसीम अहमद और मोहम्मद वाजिद को नामजद किया है। इनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और कंपनी ऐक्ट 1956 की धारा 629 (ए) के तहत मामला दर्ज हुआ है। इससे पहले राज्य चीनी निगम लिमिटेड ने चीनी मिलें खरीदने वाली दो फर्जी कंपनियों के खिलाफ नौ नवंबर 2017 को गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी। यह रिपोर्ट सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन विंग की जांच के बाद दर्ज हुई थी।

तलाशे जा रहे राजनीतिक मायने
2010-11 में हुए चीनी मिल घोटाले की जांच लोकसभा चुनाव के दौरान जोर पकड़ रही है तो इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यूपी में अभी चार चरण के चुनाव बाकी हैं। ऐसे में जांच शुरू होने का असर गठबंधन पर दिखाई पड़ सकता है। मायावती के कार्यकाल में हुए इस घोटाले की सीएजी और लोकायुक्त जांच रिपोर्ट अखिलेश सरकार को सौंपी गई थी पर मामला ठंडा पड़ा रहा। योगी सरकार ने अप्रैल 2018 में केंद्र को मामले की सीबीआई जांच के लिए पत्र भेजा था। अब एक साल बाद सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है।
 

क्या है मामला
चीनी निगम ने वर्ष 2010-11 में 21 चीनी मिलें बेची थीं। नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड तथा गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज (कुशीनगर और हरदोई) इकाई की मिलें खरीदने के लिए आवेदन किया था। दोनों कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया के अगले चरण के लिए योग्य घोषित कर दिया था। जांच में खुलासा हुआ कि कंपनियों ने काल्पनिक बैलेंस शीट, बैंकों का फर्जी लेन-देन दिखाकर कीमती चीनी मिलों को औने-पौने दामों में खरीद लिया। बिक्री प्रक्रिया के दौरान किसी अधिकारी ने भी कंपनियों की ओर से दाखिल किए गए दस्तावेज की पड़ताल नहीं की।

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