मां की याद आई तो बीस साल बाद संन्यासी बन चुका बेटा लौटा घर
कुशीनगर
मां की याद आने पर सन्यासी बन चुका बेटा हृदया बीस साल बाद घर लौट आया। अरसे बाद बेटे को सामने पाकर मां दुर्गावती की आंखें बरस पड़ीं। उनके लिए संसार की यह सबसे बड़ी नेमत थी। अब मां के साथ गांववालों की भी इच्छा है कि वह गृहस्थ जीवन में लौट आए।
मामला तरयासुजान थाना क्षेत्र के सरया खुर्द गांव का है। सोमवार की शाम अचानक एक संन्यासी दुर्गावती के घर के दरवाजे पर पहुंचा। वह तुरंत पहचान गईं कि यही उनका लापता पुत्र हृदया है। पुत्र को सामने देखकर दुर्गावती की आंखें छलक पड़ीं। संन्यासी पुत्र भी आंसू रोक नहीं सका।
दुर्गावती के तीन पुत्रों में हृदया सबसे बड़ा है। करीब 20 वर्ष पूर्व हृदया अपने बहनोई के साथ रोजी-रोटी की तलाश में पंजाब के लुधियाना शहर चला गया था। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। इसी बीच किसी बात को लेकर बहनोई से हृदया की अनबन हो गई। नाराज हृदया बिना किसी को कुछ बताए वहां से कहीं और चला गया। घरवाले व उनके रिश्तेदार हृदया की काफी खोजबीन करते रहे, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। बेटे की बाट जोहते हुए पिता भगवती भी चल बसे। बुजुर्ग मां दुर्गावती देवी के कंधे पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई।
हृदया से बन गया अनिल गिरि उर्फ नागा बाबा
हृदया ने बताया कि वह राजस्थान स्थित झुनझुन चला गया। वहां एक मठ में रहकर सेवादारी करने लगा। मठ के महंत ने सेवादारी से प्रसन्न होकर उसे दीक्षा देकर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। साथ ही उसका नाम अनिल गिरि उर्फ नागा बाबा रख दिया। हृदया ने बताया कि कुछ दिन पूर्व गया जाते वक्त उसे मां की याद आई। फोरलेन बन जाने से उसे रास्ते की पहचान नहीं हो सकी और वह बिहार पहुंच गया। वहां से वह मां से मिलने का विचार त्याग पुन: मठ लौट गया।
मां चाहती है गृहस्थी में लौट आए
मां के साथ-साथ पूरे गांव के लोग उससे गृहस्थ जीवन में लौट आने की मनुहार कर रहे हैं, लेकिन हृदया का निर्णय अटल है। बकौल, हृदया उसे मां की याद हमेशा आती रहती थी। वह सिर्फ मां के दर्शन करने आया है। कुछ दिन सेवा करने के बाद मठ चला जाएगा।