महासचिव बनने के बाद प्रियंका गांधी का पहला रोड शो, क्या यूपी में कांग्रेस को दे पाएगा संजीवनी?

 
नई दिल्ली     

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपी गई है. सूबे की सियासी नब्ज को टटोलने और कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ सोमवार को सूबे की राजधानी लखनऊ पहुंच रहे हैं और रोड शो के जरिए सियासी माहौल बनाने की कवायद करेंगे.

कांग्रेस महासचिव पद संभालने के बाद पहली बार आज प्रियंका गांधी सूबे की राजधानी लखनऊ में रोड शो करेंगी. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर के मुताबिक यह कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास का स्वर्णिम दिन होगा, लेकिन ऐसे में सवाल है कि सूबे में बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस को प्रियंका गांधी क्या संजीवनी दे पाएंगी?

प्रियंका का रोड शो

लखनऊ अमौसी एयरपोर्ट से लेकर कांग्रेस कार्यालय तक प्रियंका गांधी के स्वागत में सड़कें पोस्टरों और बैनर से पटी हुई नजर आ रही हैं. सुबह 11 बजे लखनऊ एयरपोर्ट मोड़ से प्रियंका-राहुल का रोड शो शुरू होगा और प्रदेश कांग्रेस दफ्तर तक पहुंचेगा. कानपुर, उन्नाव, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अमेठी, रायबरेली, बाराबंकी, फैजाबाद जैसे आसपास के जिलों के कार्यकर्ता प्रियंका और राहुल के स्वागत के लिए पहुंच रहे हैं.

कांग्रेस की खस्ता हालत

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास 2 सांसद और 6 विधायक और एक एमएलसी है. इसके अलावा सूबे में पार्टी का वोट प्रतिशत सिंगल डिजिट में है. सूबे में पार्टी संगठन में अध्यक्ष के नाम के सिवा किसी के बारे में लोगों को पता ही नहीं है. इससे पार्टी की खस्ता हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी सूबे की सत्ता पर 311 विधायकों के संग प्रचंड बहुमत के साथ काबिज है और मौजूदा समय में 68 सांसद हैं. ऐसे चुनौती भरे दौर में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी को सौंपी गई है.

प्रियंका के सामने चुनौतियां

उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यहां के संगठन को फिर से खड़ा करने की होगी. अब जबकि लोकसभा चुनाव करीब हैं तो इतने कम समय में संगठन को नए तरीके से खड़ा करना आसान बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है. इतना ही नहीं कांग्रेस के पास अपना कोई मजबूत वोट बैंक भी नहीं है. यही वजह रही कि सपा-बसपा ने कांग्रेस को अपने गठबंधन में शामिल नहीं किया.

पूर्वांचल बीजेपी का गढ़

देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है, इसके लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश को जीतना सबसे जरूरी माना जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश विशेषकर पूर्वांचल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर जैसी अहम सीटें हैं. मौजूदा समय में पूर्वांचल बीजेपी का गढ़ बना हुआ है, ऐसे में पूर्वांचल की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी को सौंपकर कांग्रेस ने एक बड़ा दांव चल दिया है. हालांकि प्रियंका के राजनीति में कदम रखने के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश नजर आ रहा है.

2009 में पूर्वांचल की 18 सीटें कांग्रेस के नाम

प्रियंका गांधी को सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से 42 सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं और बाकी 38 सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी गई हैं. प्रियंका के जिम्मे जो 42 सीटें हैं, 2009 के लोकसभा चुनाव में इनमें से 18 सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही थी. यही वजह है कि कांग्रेस को प्रियंका से उम्मीदें है. प्रियंका गांधी जिस तरह से चार दिन लखनऊ में रुक कर पार्टी संगठन और नेताओं से मुलाकात कर सियासी नब्ज टटोलने का काम करेंगी. इससे माना जा रहा है कि सूबे की सियासत को वे गंभीरता से ले रही हैं.

पूर्वांचल के इन जिलों पर नजर

पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल में वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, इलाहाबाद, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, चंदौली, कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़, देवरिया, महराजगंज, बस्ती, सोनभद्र, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर जैसे जिले आते हैं. इस इलाके में ब्राह्मण मतदाता भी अच्छे खासे हैं, जो एक दौर में कांग्रेस का मूल वोटबैंक रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि प्रियंका के सहारे कांग्रेस इन्हीं वोटों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. 

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