मदर्स डे स्पेशल: काश! हम मां की मां बन पाते

 
मदर्स डे
मां है तो खुदा की जरूरत ही नहीं। दरअसल, मां हम सभी का इस कदर ख्याल रखती हैं कि किसी दूसरे की दरकार ही नहीं होती। पर मां की जिंदगी में एक ऐसा पड़ाव भी आता है जब मां को हमारी जरूरत होती है। जब मां बुजुर्ग की श्रेणी में आ जाती हैं तो उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से संपन्न बनाना जरूरी हो जाता है। वहीं घर में अगर दो मां (सास और बहू) हैं तो उनके बीच तालमेल जरूरी है। आखिर यह सब मुमकिन कैसे हो सकता है, आज मदर्स डे पर एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रियंका सिंह और राजेश भारती… 

निधि और अवनीश की शादी को 2 साल हो गए। निधि को शिकायत है कि सासू मां यानी अवनीश की मां हर बात में रोकटोक करती हैं और खुद के साथ तुलना करने लगती हैं। अगर अवनीश से निधि कुछ कहती हैं तो वह मां की तरफदारी करने लगते हैं। इससे निधि और अवनीश के रिश्ते खराब होने लगे। दोनों मदद के लिए काउंसलर के पास पहुंचे। काउंसलर ने दोनों से बात करने के बाद अवनीश की मां से भी बात की। मां का कहना था कि निधि उनकी कोई बात नहीं सुनती और हमेशा चिढ़ी-चिढ़ी रहती है। काउंसलर ने तीनों को कुछ बातें समझाईं और अब वे लोग हंसी-खुशी साथ रह रहे हैं। 

दरअसल, सास-बहू की आपसी खींचतान में सबसे ज्यादा परेशान बेटा ही होता है। वह अच्छे बेटे की भूमिका निभाए या अच्छे पति की, इसी असमंजस में फंसा रह जाता है। ऐसे में परेशानी मां को होती है तो खुद बेटा भी कम परेशान नहीं होता। बीवी की टोकाटोकी ऐसी होती है कि कई बार चाहकर भी पति अपनी मां की मदद नहीं कर पाता या उन्हें अपने साथ नहीं रख पाता। ऐसे में बुजुर्ग मां को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वैसे, थोड़ी कोशिश करे तो सास-बहू के टकराव को कम करने में बेटा अहम भूमिका निभा सकता है और ऐसे में मां की जिंदगी में ज्यादा सुकून आ सकता है। 

अहम मसले और उनका समाधान 
मसला: कौन कितना अहम? 
गलत तरीका: सुलभ की शादी बीते साल हुई। बेटे की हंसी-खुशी शादी करने वाली सुलभ की मां रजनी थोड़े ही दिन बाद बुझी-बुझी रहने लगीं। दरअसल, सुलभ पहले तो ऑफिस से आकर सीधा रजनी के पास जाकर बैठता था। चाय, डिनर सब साथ ही करता था लेकिन शादी के बाद से वह सीधा अपने कमरे में चला जाता है। कई बार सुलभ और उसकी पत्नी सुलक्षणा खाना भी अपने कमरे में ही खा लेते हैं। रजनी को बहुत अकेला लगने लगा क्योंकि उनके पति भी इस दुनिया में नहीं हैं। 

इसके उलट किस्सा है, राहुल और उनकी मां सुनीता का। राहुल अक्सर शॉप से लौटकर मां सुनीता के साथ ही बैठा रहता है। कभी-कभार वह काम से लौटकर सीधा अपने कमरे में चला गया तो सुनीता ने हंगामा खड़ा कर दिया कि राहुल तो बीवी का गुलाम हो गया है। उन्होंने बहू मुक्ता को भी डांट दिया कि दिन में राहुल के साथ कमरे में घुसने की जरूरत नहीं है। राहुल की हिम्मत ही नहीं हुई कि वह मां से कुछ पाता। 

मसलों को हावी ना होने दें

सही तरीका: सुलभ को इस बात का अहसास था कि मां और पत्नी, दोनों उसके लिए अहम है। उसने शादी के बाद भी मां रजनी के साथ वक्त बिताना जारी रखा। हां, अब पहले जितना टाइम तो नहीं मिलता था लेकिन जब भी मुमकिन होता, वह मां से बातें करता और उनके साथ वक्त बिताता। पत्नी ने रोक-टोक करने की कोशिश की तो उससे भी साफ कह दिया कि तुम दोनों ही मेरे लिए अहम हो लेकिन एक की जगह दूसरी नहीं ले सकती। 

राहुल ने सोचा और तय किया कि वह मां से इस बाते में बात करेगा। उसने आराम से मां को समझाया कि अब मुक्ता भी न सिर्फ उसकी जिंदगी का, बल्कि उस घर का भी अहम हिस्सा है। जितना ज्यादा आप उसे अपनाएंगी, वह भी आपको अपनाएंगी। वैसे भी आप बड़ी हैं और आपका दिल भी बड़ा है। ऐसे में छोटी-छोटी बातों को बड़ा बनाने से दिक्कत ही होगी। मां को भी लगा कि कहीं बेटा मुंह ही न मोड़ ले इसलिए उन्होंने राहुल और मुक्ता को थोड़ा वक्त अकेले बिताने को प्रेरित किया। साथ ही, मुक्ता की चीजों में कमी निकालना भी छोड़ दिया। 

मसला: कौन कितना बदले? 
गलत तरीका: रोशनी की शादी को अभी 3 महीने ही हुए हैं लेकिन वह ससुराल से परेशान हो चुकी हैं। सासू मां का छोटी-छोटी बातों पर टोकना, उस घर से नियम-कायदों को थोपना, रोशनी से यह कहना कि अब यही तुम्हारा घर है इसलिए बार-बार मायके जाने की जरूरत नहीं है या फिर तुम आते ही घर की साज-सज्जा को क्यों बदलने लगीं आदि बातें रोशनी को परेशान करने लगीं। रोशनी सिंगल फैमिली से आई थी और ससुराल में बड़ा परिवार था इसलिए भी अजस्ट करने में दिक्कत हो रही थी। इसके उलट कहानी है नंदिनी और जयेश की। जयेश ने शादी के फौरन बाद नंदिनी की हर बात में हां में हां मिलानी शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि नंदिनी ने घर में दंबाई शुरू कर दी और सास-ससुर और देवर की हर बात में कमी निकाल कर उन्हें बदलने की कोशिश करने लगी। 

सही तरीका: रोशनी ने उस बारे में पति लवकेश से आराम से बात की। लवकेश ने पूरी बात समझ मां से बात की। उसने मां को समझाया कि रोशनी दूसरे घर से आई है। उसकी सोच, जरूरतें और पसंद-नापसंद अलग हैं। उन्हें समझना जरूरी है। साथ ही, उससे 100 फीसदी बदलाव की उम्मीद के बजाय बाकी लोग भी खुद में थोड़ा-थोड़ा बदलाव करें तो सबके लिए बेहतर रहेगा। फिर समझने वाली बात यह भी है कि वह इतने बरसों तक अपने हिसाब से रहती आई है। अब जबकि यह उसका अपना घर है तो यहां भी उसे अपनी पसंद की चीजें करने का हक मिलना चाहिए। लवकेश ने मां को अपने दोस्त मोहित का उदाहरण बताया।  

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