भोपालियों को मिलेगा बाहरी सांसद, प्रज्ञा और दिग्विजय में से किसे चुनेगी जनता?

भोपाल
गर्मी के चढ़ते पारे के साथ भोपाल का सियासी पारा भी तप रहा है.भोपाल लोकसभा सीट पूरे देश में चर्चा में है. बीजेपी की प्रज्ञा ठाकुर और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ये दोनों प्रत्याशी अलग-अलग कारणों से विवाद और चर्चा में रहे हैं. भोपाल सीट का एक रोचक पहलू है.वो ये है कि भोपाली मतदाता पैराशूट प्रत्याशी पर यकीन करते हैं. कांग्रेस हो या बीजेपी, अपवाद छोड़ दें तो दोनों ने जब भी इस सीट पर कोई बाहरी प्रत्याशी उतारा, जनता ने उसे अपना सांसद चुना.

भोपाल लोकसभा सीट धीरे-धीरे भाजपा का गढ़ बन गयी है. 30 साल से लगातार यहां बीजेपी प्रत्याशी सांसद चुने जा रहे हैं. दलों के भीतर बाहरी कैंडिडेट को लेकर चाहें जितना विरोध हो, लेकिन भोपाल सीट से जब भी बाहरी प्रत्याशी ने अपनी किस्मत आजमाई है,जनता ने उन पर पूरा भरोसा जताया है. 1967 में कर्नाटक के जगन्नाथ राव जोशी मैदान में उतरे थे.मतदाताओं ने जोशी को जीत दिलाई थी.वहीं 1994में टीकमगढ़ की उमा भारती भी भोपाल सीट से जीतकर संसद तक पहुंची थीं. कांग्रेस के नवाब अली खां पटौदी 1991 में भोपाल सीट से खड़े हुए थे, वो सीधे तौर पर तो भोपाल के नहीं लेकिन भोपाल से उनका ननिहाल का नाता है. लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया.

इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. प्रज्ञा ठाकुर और दिग्विजय सिंह दोनों बाहरी हैं. इसलिए इस बार जो भी जीतेगा वो भोपाल के लिए बाहरी ही होगा.

भोपाल सीट से बाहरी प्रत्याशी पर भाजपा-कांग्रेस के अपने-अपने दावे हैं.कांग्रेस का कहना है दिग्विजय सिंह भोपाल के लोगों के लिए बाहरी नहीं हैं. दिग्विजय सिंह 10 साल तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं इसलिए भोपाल की जनता से उनका सीधा जुड़ाव रहा है. भाजपा कह रही है प्रज्ञा सिंह बाहरी हैं इससे भोपाल की जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता. वो परंपराओं की प्रतीक हैं.

नवाबों की नगरी भोपाल के बारे में कहा जाता है कि जो भी यहां आता है यहीं का होकर रह जाता है.सियासत में भी कुछ ऐसी ही इबारत है.भोपाल में दिग्वजिय सिंह और प्रज्ञा सिंह ठाकर बाहरी हैं,लेकिन सियासत के इस खेल भोपाल को इस बार बाहरी सांसद ही मिलेगा.

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