भारत की हार से दिल टूटा है पर उम्मीद नहीं

नई दिल्ली 
पूनम यादव के साथ मेलबर्न के मैदान से भारतीय आस भी जा रही थी। आस पहली बार आईसीसी टूर्नमेंट जीतने की। आस पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनने की। आस पहली बार इतिहास में दर्ज होने की। बेशक… आस टूटी है, लेकिन हौसला नहीं। बेशक… हार दिल तोड़ती है। लेकिन उम्मीद नहीं। बेशक… दर्द तब ज्यादा बड़ा होता है जब हार फाइनल में हो। लेकिन हार के मायने रास्ते बंद होना नहीं। हार दिखाती है कि आप मुकाबला किया। फाइनल की हार के मायने हैं कि आप वहां तक पहुंचे। वहां तक पहुंचने के सभी पड़ाव आपने पार किए। इसलिए हमें हार का दुख है, लेकिन हम निराश नहीं हैं। 

याद कीजिए 2017 का 50 ओवर के वर्ल्ड कप का फाइनल। भारतीय टीम इंग्लैंड से हारी थी। लेकिन टीम का स्वागत एक विजेता की तरह हुआ। उस मैच ने भारत में महिला क्रिकेट के प्रति रवैया बदला। हार-जीत से इतर मुकाबले को तवज्जो मिली। जीत के प्रति अधीर इस समाज ने उस हार को भी दिल से लगाया। खेल को खेल-भावना से लिया। यह मुकाबला भी वैसा ही रहेगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। इस हार को बस एक पड़ाव मानना चाहिए। पड़ाव जिसके आगे लंबा सफर है। और इस सफर को आगे ले जाने के लिए हमारे पास पर्याप्त प्रतिभा मौजूद है। इस टूर्नमेंट में युवा शेफाली वर्मा ने दिखाया कि 'छोरी' में दम है। पूनम यादव ने दिखाया कि उसकी फिरकी को समझ पाना आसान नहीं। तानिया भाटिया ने दिखाया कि उसके दस्तानों में गजब की फुर्ती है। हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में निखार आ रहा है। टीम बन रही। संवर रही है। और इस बनती-संवरती टीम को समर्थन चाहिए। मिथ्या आलोचना नहीं। हां, हार के कारणों पर चर्चा होगी। होनी चाहिए। आत्मविश्लेषण आगे बढ़ने की पहली शर्त है। लेकिन विश्लेषण छींटाकशी या उम्मीद तोड़ने वाली नहीं होनी चाहिए। नहीं होगी, ऐसी आशा है। 

भारतीय महिला टीम टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंची। पहली बार खिताबी मुकाबले खेलने उतरी। सामने थी चार बार चैंपियन रह चुकी ऑस्ट्रेलिया। ऑस्ट्रेलिया को बड़े मुकाबले खेलने का अनुभव है। वह जानती है कि आखिरी छलांग कैसे लगाते हैं। यही अनुभव उसके काम आया। भारतीय टीम जब इस टूर्नमेंट के लिए रवाना हुई तो उससे बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं। सभी जानते थे कि सफर बहुत मुश्किल होने वाला है। ग्रुप में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसी मजबूत टीमें थीं। लेकिन टीम ने ग्रुप टॉप किया। अहम मौकों पर संयम बनाए रखा। पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलिया को चौंकाया। न्यूजीलैंड को करीबी मुकाबले में हराया। श्रीलंका और बांग्लादेश को मात दी। मैच दर मैच टीम मजबूत होती गई। मैच दर मैच टीम से उम्मीदें बढ़ती गईं। सेमीफाइनल में सामने मजबूत इंग्लैंड की टीम थी। किस्मत का साथ मिला और टीम खिताबी मैच में पहुंची। लेकिन यहां चूक गईं। लेकिन चूकना, चुक जाना नहीं होता है। और आखिर में जावेद अख्तर साहब की लाइन के साथ- 'दिल दुखा है टूटा तो नहीं है, उम्मीद का दामन छूटा तो नहीं है।' 
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *