बैंक ऑफ बड़ौदा ने अजस्ट किए देना और विजया के 30 हजार एंप्लॉयी

मुंबई
बैंक ऑफ बड़ौदा (बॉब) ने तीनतरफा विलय के ऐलान के सात महीने के भीतर विजया बैंक और देना बैंक के 30 हजार एंप्लॉयीज को इंटीग्रेट कर लिया है। इससे बॉब के एंप्लॉयीज की संख्या बढ़कर 85 हजार तक पहुंच गई है। यह बैंक में नए स्ट्रक्चर के साथ नए मैनेजमेंट लेवल के क्रिएशन, मर्ज होने वाले बैंकों के मैनेजर्स और एंप्लॉयीज के साथ कई दौर की वार्ता के अलावा एंप्लॉयीज यूनियन के मेंबर्स की चिंता दूर करने की कोशिशों का नतीजा है। बॉब के हेड (स्ट्रैटेजिक एचआर) जॉयदीप दत्त रॉय कहते हैं, 'हमें पहले ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रक्चर बनाना था क्योंकि समूचा स्पैन ऑफ कंट्रोल बड़ा होने वाला था।'

ऐसे बिठाया तालमेलसबसे पहले बैंक ऑफ बड़ौदा पूरे संस्थान को पहले से मौजूद चार स्तरीय ढांचे में लेकर आया। उसने कई जोन और रीजन बनाए और यूनिफाइड रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर अपनाया। रॉय कहते हैं, 'अप्रैल में हुई इस कवायद से दूसरी कारोबारी प्रक्रिया और व्यवस्था के बीच तालमेल बिठाने में मदद मिली।' इसके बाद बैंक ने लीडरशिप और हायर पोजिशंस के लिए टैलेंट प्लानिंग का तालमेल नई व्यवस्था के साथ बिठाया। बैंक ने कुछ नए पदों का सृजन किया क्योंकि सीनियर लेवल पर ज्यादा ऑफिसर हो गए थे।

बनाई कई नए पोस्ट
बैंक ने जनरल मैनेजर (जीएम) और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर (ईडी) के बीच चीफ जनरल मैनेजर (सीजेएम) की पोस्ट बनाई ताकि जीएम की रिपोर्टिंग ग्रुप सीजीएम को हो और बैंक का मैनेजमेंट आसान बने। इससे बैंक को इन पोजिशंस में सीनियर लेवल पर ज्यादा अफसरों को लाने में मदद मिली। रॉय बताते हैं, 'किसी क्या भूमिका दी जाए, इसकी कसौटी योग्यता के साथ-साथ कामकाजी दक्षता थी और हमने न्यायसंगत तरीके से उनका आवंटन किया। मिसाल के लिए 15 सीजेएम (बॉब के नौ, देना और विजया के तीन-तीन) का सेलेक्शन पारदर्शी तरीके से किया गया। हमने बोर्ड की मंजूरी वाली पॉलिसी अपनाई और तीनों बैंकों के अफसरों से ऐप्लिकेशन मंगाए। सबके लिए समुचित चयन प्रक्रिया अपनाई गई। सबको समुचित प्रतिनिधित्व दिया गया।'

हर एंप्लॉयी से सवाल
ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रक्चर तैयार किए जाने के बाद बैंक के सामने अगली चुनौती अफसरों को अलग-अलग रोल देने की थी। बैंक ने मंथली पल्स सर्वे वाला सिस्टम अपनाया, जिसमें हर एंप्लॉयी के मोबाइल फोन पर चार-पांच सवाल भेजे गए। हर महीने 20 हजार से 30 हजार कर्मचारियों से प्रगति संबंधी फीडबैक मिला, जिससे बैंक को जरूरत पड़ने पर सही कदम उठाकर रास्ता बदलने में मदद मिली।

बेनिफिट और सैलरी में सामंजस्य पर ध्यान
रॉय कहते हैं, 'एंप्लॉयीज की बेनिफिट और सैलरी में पहले दिन से सामंजस्य बिठाया गया। हमने तीन अप्रोच में सबसे अच्छा वाला अप्रोच अपनाया, भले ही उससे हमारी कॉस्ट थोड़ी बढ़ गई।' जॉब लॉस और गोल्डन हैंडशेक के बाबत पूछे जाने पर रॉय ने कहा कि पब्लिक सेक्टर बैंकों में एंप्लॉयीज को समाहित करने की पूरी गुंजाइश होती है क्योंकि उनके पास कई तरह के काम होते हैं। अगली चुनौती यूनियन से डील करने को लेकर थी। रॉय कहते हैं, 'सरकारी बैंकों में बहुत से यूनियन और असोसिएशन हैं। डिप्लॉयमेंट और प्रमोशन पॉलिसी जैसे मामलों में हमने उन्हें भरोसे में लिया था और बात की थी।'

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *