बेगूसराय: गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन में त्रिकोणीय लड़ाई

 
बेगूसराय 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जन्मभूमि बेगूसराय, कभी ‘पूरब का लेनिनग्राद’ कहा जाने वाला बेगूसराय। आज यह बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह और 2016 में जेएनयू के बहुचर्चित देशविरोधी नारेबाजी कांड के आरोपी कन्हैया कुमार के बीच मुकाबले की वजह से एक बार फिर चर्चा में है। बेगूसराय लोकसभा सीट के लिए चौथे चरण में 29 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। सीपीआई कैंडिडेट कन्हैया और बीजेपी के गिरिराज दोनों ही भूमिहार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिनकी बेगूसराय में अच्छी खासी तादाद है। जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया के लिए जेएनयू के उनके कई पूर्व साथी और तमाम सोशल ऐक्टिविस्ट, कलाकार बेगूसराय में डेरा डाले हुए हैं और पूरा जोर लगा रहे है। 
 
गिरिराज, कन्हैया और तनवीर हसन में त्रिकोणीय मुकाबला 
हालांकि, कन्हैया के लिए यहां मुकाबला आसान नहीं है। आरजेडी से यहां से तनवीर हसन को मैदान में उतारा है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। हसन ने पिछली बार यानी 2014 में यहां बीजेपी को जबरदस्त टक्कर दी थी। हालांकि, वह बीजेपी के भोला सिंह से करीब 58,000 वोटों से हार गए थे। 2014 में सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह तीसरे पायदान पर थे। भोला सिंह को 4,28,227 वोट तो तनवीर हसन को 3,69,892 वोट मिले थे। सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1,92,639 वोट मिले थे। आंकड़ों से जाहिर है कि अगर कन्हैया यहां से विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार होते तो बीजेपी के लिए यह सीट बचाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन सरीखा होता। 
 
लेफ्ट के लिए उर्बर जमीन 
बेगूसराय लेफ्ट के लिए उर्बर जमीन रही है। 1930 के दशक में यहां के भूमिहीन ग्रामीणों ने विद्रोह कर दिया था और स्थानीय जमींदारों की जमीनों पर कब्जा कर लिया था। इसी वजह से इसे पूरब का लेनिनग्राद कहा जाता है। बेगूसराय में सीपीआई भले ही सिर्फ एक बार लोकसभा चुनाव जीत पाई है, जब 52 साल पहले 1967 में योगेंद्र शर्मा ने यहां लाल परचम लहराया था। लेकिन विधानसभा चुनावों में यह लेफ्ट का गढ़ रहा है। लालू प्रसाद यादव के उदय और बिहार में कुख्यात नरसंहारों के साथ जातिवादी राजनीति की जड़े जमने के बाद 90 के दशक के बाद यहां लेफ्ट का असर भी कम होता गया। 1995 तक तो बेगूसराय की 7 लोकसभा सीटों में से 5 पर लेफ्ट का कब्जा रहा। बेगूसराय लोकसभा सीट के तहत चेरिया बरियारपुर, बछवारा, तेघड़ा, मतिहानी, साहेबपुर कमाल, बेगूसराय और बखरी विधानसभा सीटें हैं। बछवारा और तेघड़ा लेफ्ट के मजबूत गढ़ रहे हैं। तेघड़ा को तो ‘मिनी मॉस्को’ कहा जाता है। 1962 में चन्द्रशेखर सिंह यहां से विधायक बने। तबसे लेकर 2010 तक तेघड़ा ने लेफ्ट के ही विधायक को चुना। बेगूसराय ही नहीं, बिहार में सीपीआई को खड़ा करने का श्रेय चन्द्रशेखर सिंह को ही दिया जाता है। खास बात यह है कि कन्हैया भी चन्द्रशेखर के गांव बिहटा के हैं बल्कि दोनों एक ही परिवार से आते हैं। कन्हैया के दादा और चन्द्रशेखर सिंह दोनों भाई थे। 
 

जातिगत गणित 
बेगूसराय में करीब 19 लाख वोटर्स हैं। इनमें अकेले भूमिहार वोटरों की तादाद करीब 4.5 लाख है। यहां के भूमिहार कभी सीपीआई के साथ थे। यहां से लेफ्ट के प्रमुख नेता भी भूमिहार समुदाय से ही रहे हैं। इस बार सीपीआई कैंडिडेट कन्हैया भी भूमिहार ही हैं। हालांकि, पिछले कुछ चुनावों से भूमिहार वोटरों का रुझान बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए की तरफ रहा है। बेगूसराय में ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ मिलाकर गैर-भूमिहार सवर्ण मतदाता करीब 1.75 लाख हैं। मुस्लिमों मतदाताओं की तादद करीब 2.5 लाख है। इसी तरह यादव मतदाता करीब 1.5 लाख, कुर्मी करीब 2 लाख और दलित करीब 2.5 लाख हैं। 
 
गिरिराज को जहां सजातीय भूमिहार और अन्य सवर्णों, कुर्मी व दलित वोटों से आस है। वहीं, कन्हैया भी भूमिहार वोटों में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। पिछली बार बीजेपी को कड़ी टक्कर देने वाले तनवीर हसन यादव और मुस्लिम वोटों के साथ-साथ कुशवाहा व अन्य पिछड़े वर्गों के वोटों के सहारे दिल्ली पहुंचने के लिए जोर लगा रहे हैं। 
 

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