बाबूलाल गौर के अवसान पर विशेष: ‘काबिल ए गौर’ तो वे हमेशा ही रहेंगे

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन कई मायनों में कभी न भर पाने वाली क्षति है. वे हमेशा काबिल-ए-गौर रहे, चाहे दशकों तक उनके मुकाबिल कोई भी क्यों न रहा हो? चार दशकों तक प्रखर विधायक के रूप में और कुछ वर्षों तक प्रदेश के दमदार मंत्री के तौर पर बाबूलाल गौर के काम याद रखे जाएंगे. वे जीवट और जुझारू नेता थे. उन्हें बुलडोजर मंत्री के तौर पर भी याद किया जाता है. अतिक्रमण हटाने और शहर को व्यवस्थित करने के लिए उन्होंने जो मुहिम शुरू की थी, उसका ही प्रताप है कि आज भोपाल देश के सबसे खूबसूरत शहरों में शुमार है.

देश के सुप्रसिद्ध भोज ताल यानी भोपाल की बड़ी झील की सुंदरता को निखारने और इसके किनारे वीआईपी रोड बनाने के लिए भी बड़ा श्रेय बाबूलाल गौर को ही जाता है. वे सबसे अधिक मतों से जीतने वाले विधायक भी बने तो वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी विधान सभा के सबसे लंबे समय तक निर्वाचित जन प्रतिनिधि भी रहे.

 

ऐसे बदला गया नाम
उनका जन्म 2 जून 1929 को उत्तरप्रदेश के यादव परिवार में हुआ था, नाम था बाबूराम यादव. चूंकि उनकी कक्षा में एक और विद्यार्थी इसी नाम का था, लिहाजा उनका सरनेम यादव की जगह गौर किया गया, फिर भोपाल में लोगों ने उन्हें बाबूराम की जगह बाबूलाल कहा और बाद में इसी नाम से उन्होंने राजनीति में अमर कीर्ति पाई. वे पूरी उम्र जनता से जुड़े रहे और जनता के मुद्दों पर ही संघर्षशील रहे. उन्हें खुद की पार्टी लाइन से इतर जाने में संकोच नहीं होता था. सुर्खियों में रहने के लिए नहीं, बल्कि वे अपनी शैली में बेबाकी के कारण चर्चा में रहते थे. हर पार्टी और हर धर्म के लोगों में उनकी लोकप्रियता भी उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करती है.

सटीक बात कहने से गुरेज नहीं
वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से उनकी कई वर्षों की निकटता किसी से छिपी नहीं है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी उम्रदराज बाबूलाल गौर को कभी नजरअंदाज नहीं कर सके. ये बाबूलाल गौर का ही साहस था कि वे विधानसभा के भीतर और बाहर सटीक बात कहने से गुरेज नहीं करते थे. 16 साल की आयु में ही वे आरएसएस की शाखा में जाने लगे थे. अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने 1974 में भोपाल दक्षिण से उपचुनाव लड़ा और जीता, हालांकि वे इससे पहले 1956 में पार्षद का चुनाव हार चुके थे.

आपातकाल के दौरान 19 माह तक जेल में रहे
उनके पिता पहलवान थे और दंगल जीतने के कारण उन्हें भोपाल में नौकरी हासिल हुई थी. पिता के साथ बाबूलाल भोपाल आए और यहीं के होकर रहे गए. उन्होंने कपड़ा मिल में मजदूरी की और साथ-साथ पढ़ाई करते हुए बीए एलएलबी की डिग्री भी हासिल की. इसी दौरान ट्रेड यूनियन के संपर्क में आए. वे आपातकाल के दौरान 19 माह तक जेल में भी रहे. यहीं वे जयप्रकाश नारायण की नजरों में भी आए.

इसके बाद वे कोई चुनाव नहीं हारे और 1990 में मंत्री और फिर उमा भारती के बाद 23 अगस्त 2004 को प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2003 में अटल जी के कारण उन्हें विधानसभा टिकट मिला था. इसके बाद वे सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे. वे राजनीति और समाजसेवा क्षेत्र में काम करने वाले के लिए प्रेरणा बने रहेंगे और उनके कामों को और कार्यशैली को गौर करना ही पड़ेगा.

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