बाढ़ का पानी कम हुआ तो जीवन पटरी पर लौटाने को फिर से जुटे लोग

सांगली
गन्ने के सैकड़ों जलमग्न खेत, कीचड़ से युक्त क्षतिग्रस्त घर, लोगों के आस-पास सड़े-गले पशुओं के दुर्गंधयुक्त कंकाल और इन्हें साफ करने के लिए संघर्षरत लोग, यह किसी कहानी का एक हिस्सा नहीं बल्कि महाराष्ट्र के बाढ़ प्रभावित सांगली और कोल्हापुर जिले के कई गांवों का सच है। इस महीने की शुरुआत में पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र के कई इलाकों में भारी बारिश और बाढ़ ने कोल्हापुर और सांगली जिलों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है।

अब बाढ़ के पानी के कम होने के साथ, इन दोनों जिलों के निवासी क्षतिग्रस्त घरों के पुनर्निर्माण के लिए जो कुछ भी बच गया है, उसे एकत्र करने की कोशिश कर रहे हैं। सांगली के पालुस तहसील में भीलावाड़ी से ब्राह्मणल गांव के रास्ते में बाढ़ से पूरी तरह बर्बाद एक पोल्ट्री फार्म दिखता है। इस पोल्ट्री फार्म में अब बस कीचड़ और मर चुकीं मृत मुर्गियां हैं। इलाके में क्षतिग्रस्त पेड़-पौधे और झुके हुए बिजली के खंभे से यहां आई बाढ़ की ताकत और उसकी भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

धीरे-धीरे शुरू हो रही है साफ-सफाई
कई जगहों पर दान किए गए कपड़ों के ढेर दिखे। कई स्थानीय लोगों ने इन कपड़ों को नहीं उठाया क्योंकि वे खराब हो गए थे। भीलवाड़ी गांव में, कुछ दुकानदारों को अपनी दुकानें साफ करते देखा गया। कुछ स्थानीय समूह और गैर-सरकारी संगठन इलाके से कचरा हटाने में मदद कर रहे हैं। बाढ़ प्रभावित ब्राह्मणल गांव के निवासी 52 वर्षीय मौली सालुके ने इसे कृष्णा नदी का प्रकोप करार दिया लेकिन कहा कि वे पुनर्निर्माण के लिए तैयार है।

पुणे की एक कंपनी में काम करने वाले इस शख्स ने कहा, ‘हमारे घर में जो कुछ भी था, कृष्णा माई वह सब कुछ ले गईं लेकिन ठीक है। हम अपना घर फिर से बनाएंगे।’ गांव के निकट राहत एवं बचाव कार्य अभियान में एक नौका के डूब जाने की घटना पर उन्होंने दुख जताया। इसमें 17 लोगों की मौत हो गयी। सालुके ने कहा, ‘मैं केवल यह कह सकता हूं कि वह (नदी) हमारे पूरे गांव को बहा कर ले गई। कई लोग इस हादसे में काल के गाल में समा गए, इससे हमें दुख होता है। गांव में स्थिति खराब होने से पहले मैं अपने बुजुर्ग माता पिता को पुणे पहुंचा दिया था।’ इसी तरह की दुर्दशा कोल्हापुर में कृष्णा नदी के किनारे स्थित कुछ गांवों में भी है।

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