बलबीर सिंह सीनियर के दो गोल, तिरंगा और राष्ट्रगान, 1948 में भारत ने ओलिंपिक गोल्ड से मनाई थी पहली वर्षगांठ

नई दिल्ली 
भारत अपनी आजादी की पहली वर्षगांठ मनाने से महज 72 घंटे दूर था। देश से 7,000 किलोमीटर दूर लंदन के वेंबले स्टेडियम के नरम हरी घास वाली सतह पर देश के 11 खिलाड़ी अपने पूर्व शासक ब्रिटेन को पानी-पानी कर रहे थे। ये अलग तरह का युद्ध था। मौका था 1948 का पुरुष ओलिंपिक हॉकी फाइनल का। भारतीय खिलाड़ियों के सधे पास और चपलता का अंग्रेज खिलाड़ी कोई तोड़ नहीं ढूंढ पा रहे थे। इससे पहले भारत के खिलाफ खेलने से इनकार करने वाले ब्रिटेन नाको चने चबा रहा था। इस मैच में एक दुबले-पतले लड़के ने इंग्लिश खिलाड़ियों को उनकी औकात बता दी थी। भारत ने मैच के आखिर में गोरो का घमंड तोड़ते हुए 4.0 से करारी मात देते हुए अपना लगातार चौथा ओलिंपिक गोल्ड जीत लिया था। भारतीय तिरंगा शान के साथ आसमान में लहरा रहा था। हॉकी के एक नए सितारे का जन्म हो चुका था। नाम था बलबीर सिंह सीनियर। 

बलबीर ने फाइनल में किए थे दो गोल 
सेंटर फॉरवर्ड पोजीशन से खेलने वाले बलबीर ने इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में दो गोल किए थे जबकि तरलोचन सिंह और पैट जेनसेन ने एक-एक गोल किया था। 1948 का यह मैच किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। 

'हवा में तिरंगा, राष्ट्रगान, जैसे कल की बात हो' 
बलबीर सीनियर ने एक इंटरव्यू में 2018 में कहा था, 'इस घटना के आज 70 साल हो गए लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे यह कल की बात हो। उन्होंने कहा था, 'तिरंगा धीरे-धीरे ऊपर जा रहा था। हमारा राष्ट्रगान बज रहा था। मेरे फ्रीडम फाइटर पिता के शब्द 'हमारा झंडा, हमारा देश, मेरे जेहन में गूंज रहा था। तब मैं समझा था इसका क्या मतलब होता है। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं भी मैदान में तिरंगे के साथ ऊपर जा रहा हूं।' 

तो 1948 ओलिंपिक में नहीं खेल पाते बलबीर 
सबसे रोचक बात तो यह थी कि भारत को इंग्लैंड के खिलाफ ओलिंपिक गोल्ड दिलाने वाले बलबीर का नाम शुरू के 39 संभावितों की सूची में भी नहीं था। लेकिन जब देशभर में उनको शामिल करने की मांग उठी तो उन्हें टेलीग्राम करके बाद में नैशनल कैंप में ज्वाइन करने को कहा गया। कैंप में दूसरे दिन उनकी पसली टूट गई थी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में वह ठीक हुए और उनका नाम 20 सदस्यीय ओलिंपिक टीम में शामिल किया गया। 

भारतीय खेल को मिल गया था 'हीरो' 
बलबीर ने अपने करियर में दो और बार 1952 और 1956 में भी ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीता था। लेकिन बलबीर के लिए 1948 का ओलिंपिक गोल्ड ज्यादा मायने रखता था। आखिर हो भी क्यों न। वह शख्स जिसे एक बार हथकड़ी लगाकर जबर्दस्ती पुलिस फोर्स में भर्ती किया गया और फिर पंजाब पुलिस से खेलने के लिए मजबूर किया गया उसके लिए यह हिसाब चुकता करने का मौका था। कुदरत का इंसाफ देखिये, वही पुलिस अधिकारी सर जॉन बैनेट जिसने गिरफ्तारी का ऑर्डर दिया था, भारतीय टीम की अगुआई करने लंदन एयरपोर्ट पहुंचा था। उसने बलबीर को गले भी लगाया। 

1948 की जीत और देश का वह जश्न 
ओलिंपिक में ब्रिटेन पर भारत की जीत का जश्न पूरे देश ने मनाया था। स्वतंत्र भारत के लिए यह खास लम्हा था। देश ने आजादी के लिए भारी कुर्बानी दी थी। लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी। जीत के बाद जब हम भारत पहुंचे तो मुंबई (उस समय बंबई) जैसे लाल कालीन लेकर बिछ गई हो। 

पाक को हराया पर भारत से पार ना पा सका ब्रिटेन 
ब्रिटेन ने सेमीफाइनल में पाकिस्तान को मात दी थी। पर हॉकी जनक देश ने ब्रिटिशों को ऐसा सबक सिखाया उनकी हेकड़ी निकल गई। भारत की ताकत के सामने ब्रिटेन को घुटने टेकने पड़े। 

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