बनारस के आम बुनकरों के लिए कब खुलेंगे वैश्विक बाजार के रास्ते?

 
वाराणसी 

बनारस में सितंबर 2017 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा लालपुर में 200 करोड़ की लागत से तैयार हुए ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर का उद्घाटन किया था तो लगा बुनकरों के ‘अच्छे दिन’ आ गए. उस वक्त प्रधानमंत्री ने कहा था, 'इस सेंटर से छोटे-छोटे बुनकर भाइयों के लिए वैश्विक बाजार के रास्ते खुल जाएंगे. इसके जरिए काशी के हुनर का परिचय पूरी दुनिया को मिलेगा.' सवाल उठता है करीब डेढ़ साल बाद क्या बुनकरों की किस्मत खुली?

बनारस में मदनपुर के निवासी बुनकर फैजल साहिद कहते हैं, 'अच्छे दिन आए मगर बुनकरों के नहीं बल्कि कुछ रसूख वाले व्यापारियों के. बुनकरों से साड़ी खरीदकर ऊंचे दाम में बेचकर बंगलुरु, मुंबई, दिल्ली और विदेश तक यह लोग साड़ियां पहुंचाते हैं, लेकिन बुनकर को वही दाम मिलता है जो 5 साल पहले मिलता था.' फैजल इसे और विस्तार से बताते हैं, हैण्डलूम की एक साड़ी बनाने में चार-पांच दिन लगते हैं. कम से कम दो लोग साड़ी बनाने में जुटते हैं. इसमें करीब 6,000 का खर्च आता है. व्यापारी इस साड़ी को 8,000 रु. में बुनकर से खरीदता है और वह इसे कम से कम 15,000 रु. में बनारस से बाहर के बड़े व्यापारियों को बेचता है. फिर यही साड़ी और बड़े व्यापारी के पास पहुंचती है. इसकी कीमत अब तक बढ़कर 25-28 हजार रु. हो जाती है.

फैजल कहते हैं, ट्रेड सेंटर खोलने के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटे-छोटे बुनकरों की दशा सुधारने की बात कही थी. उनके हुनर को विश्वपटल पर पहुंचाने की बात कही थी. हुनर तो पहुंच रहा है. लेकिन हुनर का दाम व्यापारियों को नहीं मिल रहा है.

कबीर चौक में रह रही मैहरुनिशां कहती हैं, 'हाथ और पावरलूम दोनों की बनीं साड़ियां लेकर मैं और मेरे शौहर पिछले साल ट्रेड सेंटर गए थे. हमें लगा कोई रास्ता बताएगा कि कैसे हम अपनी साड़ियों के अच्छे दाम पा सकते हैं? कैसे बिचौलिए के बिना अपनी साड़ियों को दुनियाभर में बेच सकते हैं? लेकिन वहां तो कोई सलाह केंद्र ही नहीं है. हमें बताया गया कि यहां प्रदर्शनी लगाई जा सकती है, लेकिन वह भी किसी व्यापारी की मार्फत ही लग सकती है.'

फैजल कहते हैं, अगर व्यापार को बढ़ाने के लिए मुद्रा लोन लेने जाओ तो बिना किसी नेता की सिफारिश के यह लोन नहीं मिलता. बनारस के भीतर किसी छोटे बुनकर को कोई लोन नहीं मिला, जिन्हें मिला वे व्यापारी वर्ग के हैं.

क्या कहते हैं ट्रेड सेंटर के अधिकारी?

बुनकरों के इस आरोप पर ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर में कालीन प्रशिक्षक अधिकारी प्रदीप यादव कहते हैं, 'हमारे यहां 82 दुकानें हैं. इनमें से 36 अस्थायी दुकानें (छह महीने के लिए) हैं तो 15 सरकारी विभागों जैसे गुजरात हैंडीक्राफ्ट एंड हैंडलूम डिपार्टमेंट, खादी ग्रामोद्योग की दुकानें हैं. 11 दुकानें स्थायी (पांच साल के लिए लीज पर ली गईं ) दुकानें हैं. 17 दुकानें अभी आवंटित नहीं हुई हैं. एक आम बुनकर को इसका फायदा कैसे मिल सकता है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, हाल ही में अप्रवासी समारोह के दौरान प्रदर्शनी लगी. देश-विदेश से लोग यहां आए. बनारस की कारीगरी और शिल्प को दुनियाभर के लोगों ने देखा तो इससे बुनकरों के हुनर को लोग जानेंगे.

प्रदर्शनी में अगर कोई बुनकर जगह लेना चाहे तो कैसे ले सकते हैं? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, 'प्रदर्शनी लगाने वाली संस्थाओं को हम 50 फीसदी रियायत में जगह देते हैं. आगे यह संस्थाएं बुनकरों को चुनती हैं. जब उनसे पूछा गया कि संस्थाएं प्रदर्शनी के लिए बुनकरों को कैसे चुनती हैं तो प्रदीप यादव ने अनभिज्ञता जाहिर की. प्रदीप यादव यह भी कहते हैं कि अभी लोग यहां दुकानें लेने में झिझकते हैं. इस वजह से 17 दुकानें खाली पड़ी हैं और 36 दुकानें अस्थायी हैं. खास बात यह है कि यह 36 दुकानों का अस्थायी आवंटन अप्रवासी दिवस से कुछ दिन पहले ही किया गया, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसके फायदे जानेंगे. हालांकि प्रदीप यादव की इस सफाई पर स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि इवेंट या फिर नरेंद्र मोदी के आने पर ही यह ट्रेड सेंटर सक्रिय होता है बाकी यूं ही पड़ा रहता है.

ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर में एडमिन इंचार्ज आनंद सिंह कहते हैं, 'देखिए जब किसी काम की शुरुआत होती है तो उसका रिजल्ट आने में समय लगता है, दरअसल सेंटर का लाभ उठाने के लिए कम ही बुनकर आते हैं. मेन एरिया से दूर होना शायद इसकी वजह है.' कुछेक बुनकर यहां आए और यहां दुकानें शुरू कीं, लेकिन फिर मुनाफा कम होने की वजह से वे यहां से चले गए. वे कहते हैं, यहां पर ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को खींचने के लिए हमने कई प्रयास किए. कई बड़े होटल मालिकों के साथ बैठक भी की गई, लेकिन मेन इलाके से दूर होने की वजह से पर्यटक यहां आने से झिझकते हैं. होटल मालिक और एजेंट पर्यटकों को यहां लाने के लिए कमीशन की मांग करते हैं. इसका बजट हमारे पास नहीं है.

कुल मिलाकर प्रधानमंत्री की संससदीय सीट में बुनकरों की किस्मत बदलने के लिए बनाया गया ट्रेड सेंटर वर्तमान में आम बुनकरों के अच्छे दिन लाने में नाकाम नजर आ रहा है. हालांकि ट्रेड सेंटर के अधिकारियों में भविष्य को लेकर उत्साह और उम्मीद दोनों अभी बाकी हैं.

क्या था मकसद?

·ट्रेड सेंटर से वाराणसी के हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, कारपेट, जरी और खादी उत्पादों की प्रमोशन, मार्केटिंग, ब्रांडिंग और एक्सपोर्ट का काम किया जाना था.

·इस सेंटर के जरिए कारीगर और बुनकर प्रोडक्शन के लिए कच्चा माल, तकनीकी, प्रबंधन आदि सुविधाएं दी जानी थीं. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *