बच्चों की शिक्षा के लिए बैंक लोन पर ना रहें निर्भर, बचत करें

 
नई दिल्ली 

यदि आप भी अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए बैंक लोन पर निर्भर हैं तो प्लान 'बी' तैयार रखें क्योंकि हो सकता है कि बैंक आपके लोन आवेदन को स्वीकार ना करे। आखिर हम ऐसा क्यों कह रहे हैं आइए समझाते हैं पूरी बात… 

सरकारी नियम के मुताबिक, बैंकों को 4 लाख रुपये तक का लोन बिना कोई संपत्ति गिरवी रखे स्टूडेंट्स को देना होता है। सरकार के पास भी एजुकेशन लोन के लिए एक क्रेडिट गारंटी फंड होता है। डिफॉल्ट के केस में सरकार 7.5 लाख रुपये तक का लोन इस फंड से चुकाती है। 

बैंकों का इनकार
सरकारी स्वामित्व वाले बैंक इस योजना को लेकर बहुत उत्साहित नजर नहीं आते हैं। आरबीआई डेटा के मुताबिक 91 फीसदी एजुकेशन लोन PSU बैंक दे रहे हैं। अधिक स्टूडेंट अब उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं और शिक्षा महंगी भी हो गई है। इस वजह से कर्ज में इजाफा होना चाहिए था। लेकिन इसके उलट, भारत में पिछले 4 साल में एजुकेशन लोन मार्केट 25 फीसदी घट गया है। 2014-15 में 3.34 लाख स्टूडेंट्स को एजुकेशन लोन मिला तो 2018-19 में 2.5 लाख स्टूडेंट ही कर्ज हासिल कर पाए। 

गरीब बनाम अमीर
हालांकि, कुल आवंटित लोन रकम में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है और 2018-19 में 22,550 करोड़ रहा, जबकि 2015016 में 16,800 करोड़ रुपये का एजुकेशन लोन दिया गया था। इससे पता चलता है कि बैंक केवल बड़े लोन देना चाहते हैं। पिछले 4 साल में औसत लोन 5.3 लाख रुपये से बढ़कर 9 लाख रुपये हो गया है। एक प्राइवेट बैंक के सीईओ ने कहा, 'बैंकों ने धीरे-धीरे गरीब स्टूडेंट्स को कर्ज देने से मुंह मोड़ लिया है, जिन्हें जोखिम के तौर पर देखा जाता है।' 

किसकी गलती? 
बैंकों का कहना है कि इस सेगमेंट में डिफॉल्ट की दर अधिक है। अधिकतर बैंक पब्लिक लिस्टेड एंटिटीज हैं, उनकी शेयरहोल्डर्स के प्रति जवाबदेही है और उन्हें घाटे को कम करना है। बैंकर्स अर्थव्यवस्था में सुस्ती, नौकरी की खराब स्थिति और शिक्षा के निजीकरण को भी जिम्मेदार मानते हैं। 

निष्कर्ष
सरकारी योजनाओं पर निर्भर ना रहें, अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बचत करें। 
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *