बंदूक लहरा रहे दंगाइयों की कैसी निजता: SC में योगी सरकार

नई दिल्ली
नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ भड़की हिंसा में शामिल कथित उपद्रवियों के पोस्टर छापने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कोई फौरी राहत नहीं दी है। कोर्ट ने यह मामला तीन सदस्यीय बड़ी बेंच को भेज दिया है। योगी सरकार उपद्रवियों के पोस्टर लगाने के गलत बताने वाले हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान योगी सरकार ने अपने ऐक्शन का बचाव किया और दलीत दी कि सरेआम बंदूक लहराने वाले दंगाइयों की निजता का सवाल बेमानी है। आइए जानते हैं कि इस मुद्दे पर किसने क्‍या कहा…

मेहता की दलील – जब प्रदर्शनकारी खुले में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं, मीडिया ने उनके विडियो बनाया, सबने विडियो देखा तो ऐसे में यह दावा नहीं कर सकते कि पोस्टर लगने से उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि किस कानून के तहत सरकार ने दंगा के आरोपियों का बैनर लगाया।

जस्टिस अनुरुद्ध बोस- सरकार कानून के बाहर जाकर काम नहीं कर सकती । इस पर तुषार मेहता की दलील – जब प्रदर्शनकारी खुले में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं। मीडिया ने उनके विडियो बनाया। सबने विडियो देखा। ऐसे में यह दावा नहीं कर सकते कि पोस्टर लगने से उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। निजता के कई आयाम होते हैं। अगर आप दंगों में खुलेआम बंदूक लहरा रहे हैं और चला रहे हैं तो आप निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर उठाया सवाल – किस कानून के तहत सरकार ने दंगा के आरोपियों का बैनर लगाया? जस्टिस अनुरुद्ध बोस – सरकार कानून के बाहर जाकर काम नहीं कर सकती। विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है। न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है? सीएए विरोधी प्रदर्शकारियों के पोस्टरों पर उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी इस कार्रवाई का समर्थन करता हो।

जस्टिस ललित ने सरकार से पूछा कि क्या प्रदर्शनकारियों को हर्जाना जमा करने की समय सीमा बीत गई है?

तुषार मेहता- अभी नहीं, उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दिया है।

जस्टिस ललित – अगर समय सीमा बीत गई होती तो भी बैनर लगाने वाली बात समझ में आती।

तुषार मेहता की दलील– दंगाइयों के पोस्टर सबक सिखाने के लिए लगाया गए। ताकि आगे से लोग इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में शामिल होने से डरें। लोगों का पोस्टर में नाम यूं ही नहीं आया है। नोटिस के बाद नाम आया है। मनमाने तरीके से पोस्टर में नाम नहीं आया है।

वेकेशन बेंच ने कहा कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाएगी, जिसमें यूपी के अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर को हटाएं। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को मामला भेजा। उपयुक्त पीठ अगले सप्ताह मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 9 मार्च के आदेश पर रोक नहीं लगाई। मामला लार्जर बेंच रेफर किया और इसके लिए मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा

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