फेंका गया Cigarette का टुकड़ा भी खतरनाक, होते हैं 250 केमिकल

 नई दिल्ली
आमतौर पर सिगरेट पीने वाले और धुएं के सीधे संपर्क में आने वाले लोगों को धूम्रपान के दुष्प्रभाव का सामना करने वालों की श्रेणी में रखा जाता है, लेकिन अब नुकसान का यह दायरा बढ़ गया है। इसमें एक तीसरी कड़ी जुड़ गई है और यह तीसरी श्रेणी है, ‘थर्ड हैंड स्मोकर्स’ की। थर्ड हैंड स्मोकिंग दरअसल सिगरेट के अवशेष हैं, जैसे बची हुई राख, सिगरेट बड और जिस जगह तंबाकू सेवन किया गया है, वहां के वातावरण में उपस्थित धुंए के रसायन। बंद कार, घर, ऑफिस का कमरा और वहां मौजूद फर्नीचर, आदि धूम्रपान के थर्ड हैंड स्मोकिंग एरिया बन जाते हैं। सिगरेट पीते हुए उसकी राख को ऐशट्रे में झाड़ना, खत्म होने पर सिगरेट के बड को ऐशट्रे में कुचल देना या बच्चों के आसपास सिगरेट ना पीना दरसअल सिगरेट के नुकसान को कुछ हद तक ही कम कर पाते हैं, पूरी तरह नहीं क्योंकि राख के कण, अधबुझी सिगरेट और धुएं का असर बहुत लंबे वक्त तक वातावरण को प्रभावित करते हैं। 
 
श्री बालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट में सीनियर कंसलटेंट, रेस्पिरेटरी मेडिसिन, डॉ ज्ञानदीप मंगल बताते हैं कि एक अनुमान के अनुसार 90 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर, 30 प्रतिशत अन्य प्रकार के कैंसर, 80 प्रतिशत ब्रॉन्काइटिस, इन्फिसिमा और 20 से 25 प्रतिशत घातक हृदय रोगों का कारण धूम्रपान है। भारत में जितनी तेज़ी से धूम्रपान के रूप में तंबाकू का सेवन किया जा रहा है उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हर साल तंबाकू सेवन के कारण कितनी जानें खतरे में हैं। तंबाकू पीने का जितना नुकसान है उससे कहीं ज़्यादा नुकसान इसे चबाने से होता है। तंबाकू में कार्बन मोनोऑक्साइड और टार जैसे जहरीले पदार्थ पाये जाते हैं और यह सभी पदार्थ जानलेवा हैं। 

WHO के आंकड़ों के अनुसार 
– दुनिया भर में धूम्रपान करने वालों का 12 प्रतिशत हिस्सा भारत में है। 
– भारत में हर साल 1 करोड़ लोग तंबाकू के सेवन से होने वाली बीमारियों की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते हैं। 
– किशोरों की बात करें तो 13 से 15 वर्ष के आयुवर्ग के 14.6 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह के तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं। 
– 30.2 प्रतिशत लोग इंडोर कार्यस्थल पर पैसिव स्मोकिंग के प्रभाव में आते हैं – 7.4 प्रतिशत रेस्तरां में और 13 प्रतिशत लोग सार्वजनिक परिवहन के साधनों में धुएं के सीधे प्रभाव में आते हैं। 
– 36.6 प्रतिशत लोग सार्वजनिक स्थानों पर और 21.9 प्रतिशत लोग घरों में पैसिव स्मोकिंग के दायरे में आते हैं। 

तंबाकू का असर केवल लंग कैंसर तक ही सीमित 
विश्व तंबाकू निषेध दिवस की इस साल की थीम ‘तंबाकू और लंग कैंसर’ है। जेपी हास्पिटल, नोएडा में असिस्टेंट डायरेक्टर सर्जिकल आंकोलॉजी डा. आशीष गोयल का कहना है कि तंबाकू का असर केवल लंग कैंसर तक ही सीमित नहीं है। यह मुंह के कैंसर, खाने की नलीका प्रभावित होना और फेफड़ों के संक्रमण का कारण भी हो सकता है। इसके अलावा एक डराने वाला तथ्य यह भी है कि तंबाकू छोड़ देने के बाद भी कैंसर की आशंका बनी रहती है। इसलिए यह जरूरी है कि इसके दुष्प्रभावों से बचने या उन्हें कम करने के उपाय करने की बजाय सिगरेट और तंबाकू के इस्तेमाल की बुरी लत को छोड़ने के उपाय किए जाएं। 

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