फांसी की सजा तभी जब आजीवन कारावास अनुपयुक्त हो: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर एक मामले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की। सर्वोच्च अदालत ने फांसी की सजा तभी मिलनी चाहिए जब आजीवन कारावास का विकल्प पूरी तरह से उपयुक्त न हो। 2015 में एक नाबालिग के साथ रेप के बाद मर्डर करने के दोषी शख्स की फांसी की सजा को सर्वोच्च अदालत ने 25 साल कैद की सजा में बदल दिया। कोर्ट ने कहा, 'जघन्य अपराधों में फांसी की सजा तभी मिलनी चाहिए जब आजीवन कैद की सजा का औचित्य न रहे।'
आपराधिक मामलों की सुनवाई का नजरिया तार्किक हो: SC
जस्टिस एन वी रमाना और जस्टिस एम एम शांतानागौदार और जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने जबलपुर के स्कूल बस ड्राइवर की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। बस ड्राइवर पर बच्ची से रेप के बाद उसकी हत्या करने का दोषी करार दिया गया था। तीन जजों की बेंच ने कहा, क्रिमिनल ट्रायल के दौरान पारंपरिक, एक ही लकीर पर चलते रहने और एकरेखीय दिशा में सोचने के तरीके को बदलना होगा। तार्किक, यथार्थवादी और तटस्थ नजरिए से क्रिमनल ट्रायल होने चाहिए। दोषी बस ड्राइवर ने अपनी सजा के खिलाफ अपील करते हुए कहा कि पुलिस के पंचनामे, गवाहों के बयान और उसके कबूलनामे में तारतम्य नहीं है। पुलिस पंचनामे में लाश मिलने की जगह उस जगह से अलग थी जहां से बच्ची की असल में लाश मिली थी। दोषी बस ड्राइवर ने अपनी अपील में यह भी दावा किया कि केस पूरी तरह से आखिरी बार देखे गए गवाहों पर आधारित है।
कोर्ट ने ड्राइवर को दोषी मानते हुए 25 साल की कैद की सजा दी
कोर्ट ने ड्राइवर की दोषमुक्त करने की अपील खारिज करते हुए कहा कि आरोपी के दोष सिद्ध होने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए बस ड्राइवर को दोषी कराद दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को 25 साल कठोर कैद की सजा में बदल दिया।
अपवाद के तौर पर ही दी जा सकती है मौत की सजा
सुप्रीम कोर्ट ने सजा का ऐलान करते हुए कहा, 'जैसा कि पूरी तरह से स्थापित है, आजीवन कारावास का प्रावधान है जबकि मौत की सजा सिर्फ अपवाद के केस में ही दी जाती है। मौत की सजा तभी दी जानी चाहिए जब आजीवन कारवास की सजा अपराध के अनुपात में कम हो। मौजूद साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर और अपराध की परिस्थितियों को देखते हुए ही मौत की सजा दी जा सकती है।'कोर्ट ने दोषी बस ड्राइवर को किसी भी सूरत में बेनिफिट आफ डाउट देने से इनकार कर दिया।