प्री-एक्लेमप्सिया से गर्भवती महिलाओं के दिल को खतरा

प्रेग्नेंसी की अवस्था में महिलाओं को अधिक सतर्क रहने की जरूरत होती है। खान-पान से लेकर एक्सर्साइज और नींद को लेकर उन्हें कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है। कहते हैं कि एक मां तनाव और थकान से जितना अधिक दूर रहती है बच्चा भी मानसिक रूप से उतना ही स्वस्थ और खुशमिजाज पैदा होता है। लेकिन अगर प्रेग्नेंसी की अवस्था में ब्लड प्रेशर अत्यधिक हो जाए और टॉइलट में प्रोटीन की मात्रा भी 300 मि.ग्रा से अधिक बढ़ जाए तो फिर यह प्रेगनेंट महिला के दिल पर बुरा असर डाल सकता है। इस स्थिति को प्री-एक्लेमप्सिया (Pre-eclampsia) कहा जाता है। हाल ही में आयी एक स्टडी ऐसा दावा करती है।

कब होता है प्री-एक्लेमप्सिया?
प्री-एक्लेमप्सिया या तो प्रेग्नेंसी की आधी स्टेज पार करने के बाद होता है या फिर तब होता है जब शिशु का जन्म होने वाला होता है। इस स्थिति में प्लेसेंटा से ब्लड का फ्लो काफी कम हो जाता है जिससे गर्भ के अंदर शिशु को पर्याप्त मात्रा में न तो ऑक्सीजन मिल पाती है और न ही जरूरी पोषक तत्व। लिहाजा शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है, गर्भवती महिला की सेहत को भी नुकसान होता है।

स्टडी के अनुसार, प्री-एक्लेमप्सिया प्रेगनेंट महिलाओं में हार्ट संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देता है और ये बीमारियां डिलिवरी के बाद भी कायम रह सकती हैं। जर्नल ऑफ अल्ट्रासाउंड मेडिसिन में प्रकाशित इस स्टडी में शोधकर्ताओं के विश्लेषण में 13 ऐसी स्टडीज को शामिल किया गया जिनमें प्री-एक्लमप्सिया से पीड़ित महिलाओं में प्रेग्नेंसी के बाद 6 महीने से लेकर 18 साल के बीच ट्रांसथोरेसिक इकोकार्डियोग्रफी के जरिए बच्चों के कार्डिएक फंक्शन को मापा गया। स्टडी की सह-लेखिका अर्चना सेल्वकुमार ने कहा कि प्री-एकलेमप्सिया एक रियल लाइफ स्ट्रेस टेस्ट है और ट्रांसथोरेसिक इकोकार्डियोग्रफी के इस्तेमाल से हम इसका जल्द पता लगा सकते हैं।

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