पूर्व ब्रिटिश पीएम के लिए क्यों खास था केरल का वायनाड? जानें अनसुनी कहानी

नई दिल्ली 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए केरल के वायनाड को अपनी सीट के तौर पर चुनने के बाद यह जगह अचानक खबरों में आ गई है। लेकिन क्या आपको पता है कि वायनाड का संबंध एक पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री और वाटरलू के युद्ध के हीरो से है। औपनिवेशक काल के समय उन्होंने वायनाड में एक मिलिट्री रणनीतिकार के तौर पर अपनी सेवाएं दी थीं।  

राजनीति में आने से पहले अर्थूर वेलसेली ब्रिटिश सेना में एक सिपाही थे। उनका जन्म आयरलैंड में हुआ था। 1805 में वायनाड से लौटने के बाद वेलसेली को ड्यूक ऑफ वेलिंगटन की उपाधि दी गई थी। वह 1828 और फिर 1834 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। एक मिलिट्री कमांडर के तौर पर, उनका नाम वाटरलू की लड़ाई के नायक के रूप में लिखा गया। टाइटैनिक के युद्ध में उनके नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने फ्रांस के बादशाह नैपोलियन बोनापार्ट को हराकर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। 

लेकिन बात करें वायनाड के इतिहास की तो अपने घने जंगल, मनोरम जगहों और खुशबूदार मसालों व पश्चिमी घाटों के बीच बसे इस पहाड़ी पठार से वेलसेली की एक अलग ही कहानी जुड़ी है। 

इतिहास को देखें तो अपने सभी प्रयासों के बावजूद, ब्रटिश कमांडर वायनाड के राजा केरला वर्मा पझासी राजा को हराकर वहां सत्ता कायम करने में नाकाम रहे। राजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बहुत परेशान कर रखा था। 

इतिहास के आंकड़े कहते हैं कि कर्नल वेलसेली (1769-1852) तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया रिचर्ड वेलसेली (मर्कीज़ वेलसेली) के भाई थे। उन्हें मालाबार, दक्षिण कैनरा और मैसूर में वहां के राजा टीपू सुल्तान व वायनाड के राजा के बढ़ते आक्रामक रूख को रोकने के लिए उन्हें भारत में सेना के कमांडर के तौर पर नियुक्त किया। वायनाड के राजा ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध की नीति अपना रखी थी। कोट्टयम के शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजा ने वायनाड पर अपना दावा कायम रखा और उसे अपने कब्जे में रखने के लिए अपना विरोध जारी रखा। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनका दावा खारिज कर दिया क्योंकि वायनाड के उच्च गुणवत्ता वाली मिर्च, हल्दी, इलायची और दूसरे मसालों के चलते ब्रिटिशों का यहां व्यापार करने का विशेष इरादा था।

मालाबार में ब्रिटिश प्रशासक और इतिहासकार रहे विलियम लोगन ने 'मालाबार मैन्युअल' में लिखा है, 'प्रांत में मद्रास सरकार के अधीन मिलिट्री कंट्रोल था और मालाबार, कैनरा व मैसूर में अर्थूर वेलसेली को सेना के कमांडर के तौर पर नियुक्त किया था।' इस मैन्युअल के मुताबिक, ब्रिटिश कमांडर ने सेना में पदों को मजबूत करने के लिए कई इंतजाम किए और एरिया में सेना की उपस्थिति बढ़ाने के लिए सड़कें बनाने के आदेश दिए ताकि विद्रोह से निपटा जा सके। 

वेलसेली ने अधिकारियों को ऐसे लोगों की प्रॉपर्टी जब्त करने और उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश दिए जिन्होंने विद्रोहियों का साथ देने का फैसला किया था। उन्होंने ऐसे स्थानीय लोगों को गुपचुप तरीके से प्रभावित करने की कोशिश की ताकि पझासी राजा को हराया जा सके। 

अपने साथी सैनिक लेफ्टिनेंट कर्नल किर्कपैट्रिक को 7 अप्रैल, 1800 को उन्होंने एक पत्र लिखा। वेलसेली ने इसमें वायनाड को एक 'मुश्किल के लिए सबसे सटीक' देश बताया। उन्होंने कहा, 'कभी ऐसा कोई देश नहीं देखा जो अपने स्वभाव, स्थिति, लोगों और सरकार के चलते इतना मुश्किलों भरा रहा हो।' वायनाड की जटिल भौगोलिक स्थिति पर नाखुशी जाहिर की क्योंकि इसके चलते ब्रिटिश सेना के लिए यहां सैन्य अभियान चलाना मुश्किल हो गया था। उन्होंने इस पूरे स्थान को 'जंगल' बताया था। 

उन्होंने लिखा था कि यह पूरा देश एक जंगल है, जो कहीं खुला हो सकता है, लेकिन कहीं घने जंगल की तरह जहां दो गज दूर देख पाना मुश्किल होता है। जब तक सड़कें नहीं बन जातीं, हमारी सेना के लिए यहां अभियान चलाना अव्यवहारिक होगा। वेलसेली ने चिट्ठी में वहां के स्थानीय लोगों को 'असभ्य और निर्दयी' भी बताया था। 

हालांकि, रिकॉर्ड्स बताते हैं कि अपनी कुशल योजना और नीति के बावजूद वेलसेली पझासी राजा को पकड़कर अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सका। केरल इतिहास कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी एन गोपालकुमारन नायर कहते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा राजा को हराने से पहले ही कमांडर को अपने देश वापस लौटना पड़ा। पझासी राजा की मौत 1805 में हुई। 

इतिहासकारों के एक वर्ग का तर्क है कि राजा को ब्रिटिश सेना के सैनिक ने नारा था लेकिन दूसरे वर्ग का दावा है कि राजा ने ब्रिटिश सेना द्वारा पकड़े जाने से पहले ही आत्महत्या कर ली थी। 

नायर ने पीटीआई को बताया, ' वायनाड मिशन के पूरा होने से पहले ही अर्थूर वेलसेली और उनके भाई को 1805 में वापस इंग्लैंड जाने को कहा गया था। उन्हें 1814 में प्रतिष्ठित ड्यूक ऑफ वेलिंग्टन की उपाधि मिली और उसके बाद नौपोलियन को पकड़ने का काम सौंप दिया गया।' 1815 में नैपोलियन को हराकर वेलसेली ने एक मिलिट्री कमांडर के तौर पर शीर्ष स्थान हासिल किया। 
 

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