RBI नीतिगत ब्याज दर में 0.25% घटबढ करने की तरीके में कर सकता है बदलाव

 
नई दिल्ली

 रिजर्व बैंक आने वाले समय में मौद्रिक नीति के संकेत देने के बारे में कुछ नए कदम उठा सकता है। आने वाले महीनों में रिजर्व बैंक मुख्य नीतिगत दर रेपो में केवल 0.25% या इसके गुणकों (दो ,तीन, या चार गुणा) में घटबढ़ करने के बजाय इससे कम अथवा अधिक दर से भी बदलाव कर सकता है। इस बदलाव से बाजार की उम्मीदों और मौद्रिक नीति उपायों के बीच का जो अंतर होता है वह कम हो सकता है। 

उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही वाशिंगटन में मुद्राकोष-विश्वबैंक की ग्रीष्मकालीन सालाना बैठक के दौरान एक कार्यक्रम में इस बात की चर्चा छेड़ी है कि क्या नीतिगत उपायों के संकेतक के तौर पर 0.25 प्रतिशत के गुणक में नीतिगत दर में बदलाव की व्यवस्था समाप्त कर इसके स्थान पर कम या अधिक दर से बदलाव किया जा सकता है। 

भारतीय स्टेट बैंक की शोध इकाई एसबीआई रिसर्च ने अपनी शोध रिपोर्ट इकोरैप में इसका जिक्र करते हुये कहा है कि अगर ऐसा होता है तो यह केंद्रीय बैंक का महत्वपूर्ण कदम होगा जिसका मकसद मौद्रिक नीति को लेकर विभिन्न पक्षों के बीच संवाद को और पारदर्शी और स्पष्ट बनाना है। फिलहाल परंपरागत रूप से रिजर्व बैंक नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत या इसके गुणक में ही वृद्धि अथवा कमी करता है। 

स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार डा. सौम्य कांति घोष द्वारा हाल में तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्तव में इस बिंदु को उठाकर गवर्नर ने यह संकेत दिया है कि नीतिगत दर में 0.1 प्रतिशत की कटौती अगर नियामक के इरादे को स्पष्ट कर सकती है तो फिर 0.25 प्रतिशत की कटौती की क्या जरूरत है यानी 0.15 प्रतिशत अधिक कटौती क्यों की जाए? इसमें कहा गया है, ‘‘आरबीआई गवर्नर दास का का इरादा न केवल सकारात्मक है बल्कि आने वाले समय के मुताबिक उपयुक्त और आधुनिक भी है।'' 

एसबीआई की इस रिपोर्ट में यह परिकल्पना भी की गई है कि अलग अलग स्तर की ब्याज दर कटौती को केंद्रीय बैंक के अलग अलग रुख से जोड़ा जा सकता उदाहरण के लिए 0.15% की कटौती को ‘अल्प उदार' 0.35% कटौती को ‘उदार' और 0.55% कटौती को ‘अति उदार' रुख का संकेत माना जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘‘केंद्रीय बैंक फिलहाल मौद्रिक नीति ब्योरे में ‘प्रथम पीढ़ी का संकेत' ही देता है। हमारा मानना है कि आरबीआई ‘दूसरी पीढ़ी का संकेत' उपलब्ध कराने पर विचार कर सकता है। इससे बाजार की उम्मीदों और उसके जवाब में जो नीतिगत रुख के बीच जो फासला होता है उसे कम किया जा सकेगा। 

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