पूरे देश में चली मोदी लहर लेकिन तमिलनाडु में डीएमके ने रुख मोड़ा

 
चेन्नई         

पूर्व हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण, देश में हर जगह मोदी की सुनामी ने विरोधी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया. क्षेत्रीय क्षत्रपों के तंबू उखाड़ दिए. वहीं, दक्षिण के तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने मज़बूती से अपने पैर जमाए रखे और मोदी की सुनामी रोक दी. तमिलनाडु की जनता ने लोकसभा चुनाव में डीएमके, कांग्रेस, वीसीके, सीपीआई, सीपीआईएम और अन्य छोटी पार्टियों वाले गठबंधन के हक़ में फ़ैसला सुनाया. यहां सत्तारूढ़ AIADMK के साथ बीजेपी और अन्य पार्टियों के गठबंधन की दाल नहीं गल सकी.

तमिलनाडु की कुल 39 सीटों में डीएमके 22, कांग्रेस 8, सीपीआई 2, सीपीएम 1, एआईएडीएमके 1, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग 1, वीसीके 1 सीट जीतने में कामयाब रही है. प्रदेश में विपक्षी डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन की सफलता के पीछे सत्तारूढ़ AIADMK के खिलाफ भारी सत्ता विरोधी रुझान (एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर) को वजह माना जा रहा है. AIADMK के पास मजबूत नेता के अभाव ने भी विपक्षी गठबंधन का काम आसान कर दिया. डीएमके सुप्रीमो एम.के स्टालिन में लोगों को मज़बूत नेता दिखा.

सत्तारूढ़ AIADMK ने जिन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया था, उनका वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो सका. इस गठबंधन में शामिल पीएमके ही एकमात्र ऐसी पार्टी रही जिसने कुछ वोट बटोरने में कामयाबी पाई. तमिलनाडु में भाजपा ने 5 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाई. डीएमके की ओर से लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वालों में कनिमोझी, ए राजा और दयानिधि मारन हैं.

नहीं चला दिनाकरन फैक्टर

तमिलनाडु चुनाव में टीटीवी दिनाकरन फैक्टर का नाकाम होना हैरानी भरा रहा. AIADMK से बग़ावत करने वाले इस नेता को वोटरों ने कोई खास अहमियत नहीं दी. अधिकतर लोकसभा सीटों पर दिनकरन की पार्टी के उम्मीदवार ज़मानत बचाने में भी नाकाम रहे.

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