पाकिस्तान समझ गया चीन की चाल, सांझी परियोजनाओं से किया किनारा

 
 बीजिंग

साल 2018 के अगस्त महीने में पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद से इमरान खान सरकार को कई मुश्किलों के दौर से गुजरना पड़ रहा है । इनमें सबसे बड़ा है आर्थिक संकट जिसमें पाक बुरी तरह उलझा हुआ है। इस मुश्किल से निकलने के इमरान खान अपने दोस्त देशों से मदद भी मांग रहे हैं । पाक का खास दोस्त चीन सही-गलत को दरकिनार कर उसकी हर तरह से मदद भी कर रहा है। लेकिन पाकिस्तान अब समझ गया है कि चीन से ज्यादा मिठास उसके लिए बाद में कड़वा घूंट साबित हो सकता है। यही वजह कि इमरान खान सरकार ने चीन के साथ साझी विकास परियोजनाओं से 24 अरब पाकिस्तानी रुपए (171.6 मिलियन डॉलर) का फंड बाहर निकालने का फैसला किया है।

यह फंड चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट ऐंड रोड का अहम हिस्सा माने जा रहे चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के इन्फ्रास्ट्रक्चर में खर्च किया जाना था। पिछले साल अगस्त महीने में पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद से CPEC की भविष्य की योजनाओं को लेकर चीन और पाकिस्तान दोनों ने फैसला नहीं किया है। भले ही चीन के बेल्ट ऐंड रोड से बाहर खींचा जा रहा यह फंड बहुत ही मामूली है लेकिन यह कदम दिखाता है कि पाकिस्तान में चीनी निवेश को लेकर कितनी आशंकाएं हैं। पाकिस्तान के भीतर ही कई सांसद सीपीईसी को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।

पाकिस्तान के योजना एवं विकास मंत्रालय ने 19 फरवरी को जारी किए आदेश में कहा गया है कि 24 अरब रुपए का यह फंड अब संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य कार्यक्रम के तहत सांसदों द्वारा चिह्नित की गई योजनाओं में खर्च किया जाएगा। पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी का यह फैसला विधायकों को खुश करने के लिए उठाया गया कदम माना जा रहा है। जबकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान सरकार CPEC को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखना चाहती है। विपक्षी दल के नेता मौलाना फजल उर रहमान ने सीपीईसी परियोजनाओं से पीछे हटने को लेकर इमरान खान की सरकार पर हमला बोला।उन्होंने कहा, "सरकार ने बेल्ट ऐंड रोड के लिए बनाए गए 27 अरब रुपए के फंड से 24 अरब का फंड निकालकर चोरी की है।"
योजना एवं विकास मंत्रालय ने 6 मार्च को एक बयान जारी कर सफाई दी कि यह धनराशि CPEC के कोर फंड का हिस्सा नहीं है बल्कि अतिरिक्त विकास परियोजनाओं के लिए आबंटित की गई थी। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि मंत्रालय ने इस बात से इंकार नहीं किया कि यह इस्लामाबाद के मन बदलने का संकेत है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का सीपीईसी के बारे में संदेह पहले से ही साफ नजर आ रहा था।कैबिनेट सदस्य रज्जाक दाऊद ने सीपीईसी परियोजनाओं पर एक साल तक किनारा कर लेने की बात कही थी क्योंकि उनका दावा था कि इससे पाकिस्तान को बहुत कम फायदा पहुंचने वाला है। दरअसल पाकिस्तान-चीन के रिश्ते सऊदी अरब की मौजूदगी से भी थोड़े से उलझे हैं। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने पिछले महीने पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर का निवेश करने का ऐलान किया था जिससे इस्लामाबाद की चीन पर निर्भरता कम हुई है।

विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान अब इस स्थिति में है कि वह साहसिक फैसले ले सके। पाकिस्तान अब अपने हित में चीन से भी थोड़ी बहुत नाराजगी मोल ले सकता है। विल्सन सेंटर में एशिया प्रोग्राम में डेप्युटी डायरेक्टर माइकेल कगलमन कहते हैं, फंडिंग के ये नए स्रोत पाकिस्तान को बीजिंग के साथ रिश्ते में मजबूत स्थिति में लाएगा और इस्लामाबाद के लिए ये चुनाव करने में थोड़ी आसानी होगी कि वह चीनी कर्ज के प्रति क्या रुख अपनाए। अबू धाबी में जयद यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर जोनाथन फल्टन ने कहा, "चीन और सऊदी अरब के बीच पाकिस्तान में वर्चस्व के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं है क्योंकि दोनों ही देशों के आर्थिक हित खुद एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं जिसमें बेल्ट ऐंड रोड परियोजना भी शामिल है।"

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