पाकिस्तान के चक्कर में भारत की सटीक खुफिया जानकारी को कोलंबो ने कर दिया इग्नोर!

 नई दिल्ली 
भारत द्वारा श्रीलंका में संभावित आतंकी हमले और इस हमले में कट्टरपंथियों के शामिल होने के सटीक अलर्ट को इस द्वीपीय देश ने नजरअंदाज कर दिया था। श्रीलंका को लगा कि नई दिल्ली उसके यहां के मुस्लिम समुदाय पर अंगुली उठाकर उसे पाकिस्तान के खिलाफ करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि इस देश के लिए यह चूक काफी भारी पड़ी।  

पूर्व रक्षा सचिव और पुलिस चीफ ने भारतीय इनपुट को किया इग्नोर 
नाम न बताने की शर्त पर कोलंबो से सूत्रों ने ईटी को बताया कि पदों से हटाए गए श्रीलंका के रक्षा सचिव और पुलिस चीफ का दावा था कि भारत अल्पसंख्यक समुदाय में आतंक विरोधी अभियान चलाने का प्रस्ताव देकर कोलंबो को पाकिस्तान के खिलाफ उकसा रहा है। 

भारत ने श्रीलंका को दी थी सटीक खुफिया जानकारी 
इकनॉमिक टाइम्स को पता चला है कि भारत ने श्रीलंका में हमले के बारे में वहां के रक्षा अधिकारियों को सटीक इनपुट दिया था। इस इनपुट में हमले की साजिश रच रहे लोगों के नाम, उनके काम का तरीका और आतंकियों के मूवमेंट तथा स्थान के नाम तक शामिल थे। बता दें कि दक्षिण एशिया में श्रीलंका पाकिस्तान का सुरक्षा सहयोगी है। यह द्वीपीय देश 1999 से ही इस्लामाबाद से बड़े पैमाने पर हथियार और गोला बारूद भी खरीद रहा है। 

ईस्टर के दिन हुए थे 8 सीरियल ब्लास्ट 
लेकिन जब ईस्टर के दिन 8 सिलसिलेवार धमाकों में जब 250 से ज्यादा लोग मारे गए और 500 से ज्यादा घायल हुए तो श्रीलंका स्तब्ध रह गया। हालांकि यह बात किसी से छुपी नहीं है कि श्रीलंका का पाकिस्तान से दशकों से अच्छे रिश्ते रहे हैं और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के अधिकारी श्रीलंकाई सेना को लिट्टे के खिलाफ संघर्ष में समर्थन भी देते थे। महिंदा राजपक्षे के शासनकाल के दौरान वहां की सेना ने लिट्टे को खत्म करने के लिए कोलंबो में स्थित पाकिस्तानी हाई कमिशन के जरिए ISI का समर्थन मांगा था। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी कथित तौर पर लंका में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की भर्तियां भी कर रहा था। 1971 के युद्ध के दौरान श्रीलंका ने पाकिस्तानी वायुसेना को अपने यहां ईंधन भरने की सुविधा उपलब्ध कराई थी। 

भारतीय खेमे से अलग नजर आना चाहता था लंका 
सूत्रों के अनुसार श्रीलंका पाकिस्तान के खिलाफ भारत के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होते नहीं दिखना चाहता है। श्रीलंका ने भारतीय अलर्ट पर काफी लापरवाह रुख अपनाया क्योंकि लिट्टे के खात्मे के बाद उसे किसी जिहादी संगठन से कोई खतरा नजर नहीं आ रहा था। 

कट्टरपंथियों पर कार्रवाई से डरा श्रीलंकाई राजनीतिक नेतृत्व! 
श्रीलंका सरकार को पिछले कुछ सालों से देश के कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने का इनपुट मिलता रहा है। लेकिन श्रीलंका के राजनीतिक नेतृत्व को लगता था कि कट्टरपंथियों के खिलाफ कदम उठाने से यह समुदाय उससे दूर हो सकता है। श्रीलंका का राजनीतिक नेतृत्व ऐसा कोई भी कदम उठाने से परहेज करता रहा जिसके कारण बौद्ध समुदाय के मुस्लिमों के खिलाफ होने का भय हो और इसके कारण देश में सांप्रदायिक सौहार्द को खतरा हो। 
 

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