कुपोषण से पीड़ित ये बच्चा कभी स्कूल नहीं गया था, आज ऑस्कर का स्टार बन चुका है

 
नई दिल्ली   
     
साल 2016 में जैन अल राफिया कुपोषण का शिकार था, महज 11-12 साल की उम्र में अपने परिवार की मदद करने के लिए डिलीविरी बॉय की भूमिका निभा रहा था और लेबनान में हजारों सीरिया देश के शरणार्थियों की तरह एक मुश्किल जीवन गुजार रहा था. उसने कभी स्कूल की शक्ल नहीं देखी थी और उसे अपना नाम तक लिखना नहीं आता था.

लेकिन आज 14 साल का ये बच्चा ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई फिल्म 'कैपरनेयाम' का स्टार है, नॉर्वे में रहने लगा है और स्कूल भी जाने लगा है. एक फिल्म ने जैन की ज़िंदगी को रातों-रात बदल दिया है.  जैन और उसका परिवार पिछले छह महीनों से नॉर्वे में रह रहे हैं. जैन और उसके तीन भाई-बहन अपनी जिंदगी में पहली बार स्कूल भी जा रहे हैं.

फिल्ममेकर नादिन लाबाकी की इस फिल्म में जै़न एक ऐसे बच्चे का किरदार निभा रहा है जिसका जन्म लेबनान में हुआ है लेकिन आधिकारिक तौर पर वो किसी देश का नहीं है क्योंकि उसके पेरेंट्स के पास उसके जन्म को रजिस्टर कराने के पैसे नहीं होते है. वो अपनी इन परिस्थितियों से बेहद परेशान हो जाता है और अपने ही मां-बाप के खिलाफ केस कर देता है क्योंकि पैदा करने के बावजूद वे उसका ख्याल नहीं रख पा रहे हैं.

जै़न की रियल लाइफ कहानी भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है. जै़न के पिता अली अर रफिया ने बताया, 'हम लोग सीरिया के रहने वाले हैं और 2012 में सीरिया में युद्ध जैसी स्थितियां और हिंसक होते हालातों को देखते हुए हमने लेबनान आने का फैसला किया था.'

लेबनान के शहर बेरूत में युद्ध जैसी परिस्थिति से तो छुटकारा मिल गया लेकिन काम की कमी और महंगी जगह होने के चलते ज़िंदगी गुजर बसर करने में दिक्कतें आने लगी. लेबनान प्रशासन सीरिया के शरणार्थियों को अपने देश में परमानेंट जगह देने के खिलाफ हैं. यही कारण है कि वहां आधिकारिक रिफ्यूजी कैंप्स नहीं है और वहां सीरिया के लोग केवल खेती-बाड़ी, साफ सफाई और कंस्ट्रक्शन जैसे सेक्टर्स में ही काम कर सकते हैं.

जैन के पिता ने बताया 'हमारे आर्थिक हालात बेहद खराब थे. मैं दिन-रात मेहनत कर रहा था. इसके बावजूद बड़ी मुश्किल से मेरे परिवार का गुजर-बसर हो पा रहा था.'

फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर जिस समय बेरूत में थे, उस दौरान 12 साल का जैन गली में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था. जैन भी अपने घरवालों को सपोर्ट करने के लिए काम करने जाता था. छोटी उम्र में ही सीरिया छोड़ देने के चलते जैन कभी स्कूल नहीं गया और अपने जीवन के कड़वे और मुश्किल अनुभवों को ही उसने सिनेमा के पर्दे पर जिया है.  फिल्ममेकर नादिन लाबाकी ने कहा था, मैंने जिस समय जैन को देखा था मैंने सोचा था कि ये लड़का कितना सहज और समझदार है, इसका भविष्य इन झुग्गियों में बर्बाद नहीं होना चाहिए.

फिल्म रिलीज़ हुई और इसे दर्शकों का जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला. जैन भी इस फिल्म के रिलीज होने के साथ बेहद चर्चा में आ गया. हालांकि लेबनान से रिसेटल होकर दूसरे देश जाना आसान नहीं है. एक आंकडे के मुताबिक, लेबनान में रह रहे साढे 9 लाख रिफ्यूजी में से केवल 9 हजार रिफ्यूजी ही 2018 में कहीं और सेटल हो पाए थे लेकिन इस फिल्म से मिली शोहरत के बाद जैन का परिवार नॉर्वे शिफ्ट होने में कामयाब रहा है.

अली ने कहा – 'मुझे अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय दिख रहा था. लेकिन अब मैं उम्मीद कर सकता हूं कि मेरे बच्चे भी पढ़लिख कर इंजीनियर डॉक्टर बन सकते हैं. लेकिन पहले तो मैं इस तरह के सपनों के बारे में सोच भी नहीं सकता था.'

फिल्म में भले ही जैन की ज़िंदगी ना बदल पाई हो लेकिन रियल लाइफ में जैन की लाइफ पूरी तरह से बदल चुकी है और सिनेमा किस तरह लोगों की रातों रात ज़िंदगियां बदल सकता है, जैन उसका एक क्लासिक उदाहरण है.

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