नक्सल विरोधी मुहिम में क्यों सफल होंगी बस्तर की आदिवासी महिला लड़ाकू?

छत्तीसगढ़ के मदनवाड़ा में पुलिस पार्टी पर हमला. एसपी विनोद चौबे सहित 29 जवान शहीद. अलग अलग घटनाओं में यहां एक ही दिन में जिला पुलिस बल के 30 समेत 36 जवानों की हत्या. 6 अप्रैल 2010 दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में सीआरपीएफ पर अब तक का सबसे बड़ा हमला. 76 जवान शहीद. 25 मई 2013 कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर बस्तर के दरभा के जीरमघाटी में नक्सली हमला. प्रदेश कांग्रेस के आला नेता नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा समेत 29 लोगों की हत्या. 24 अप्रैल 2017 सुकमा के बुरकापाल में सड़क निर्माण की सुरक्षा में लगे जवानों पर नक्सली हमला. 25 जवान शहीद.

छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा की ये वे बड़ी घटनाएं हैं, जिनमें काफी तादात में महिला नक्सली शामिल रहीं. मदनवाड़ा और ताड़मेटला की घटनाओं का कथित वीडियो भी बाद में वायरल हुआ. इसमें महिला नक्सली लीड करती नजर आईं. हालांकि इन वीडियो की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई. छोटी-बड़ी कई अन्य नक्सल हिंसाओं में महिला नक्सलियों की बड़ी तादात में शामिल होने का इनपुट पुलिस को मिलता रहा है. सूत्रों के मुताबिक बस्तर में सक्रिय नक्सलियों के संगठन में बड़ी संख्या में महिला कैडर हैं. सवाल ये है कि इनका जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है?

 

दरअसल छत्तीसगढ़ पुलिस ने पहली बार नक्सल विरोधी मुहिम के लिए महिला डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) यूनिट का गठन किया है. बस्तर के घोर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में जिले से इनकी शुरुआत की है. 30 सदस्यीय इस यूनिट में बस्तर की स्थानीय महिला लड़ाकू हैं, जिन्हें दंतेश्वरी बटालियन नाम दिया गया है. इनमें से नक्सल संगठन छोड़ मुख्यधारा में जुड़ने वाली 10 महिला कैडर हैं. इसके आलावा बाकी में ज्यादातर वे महिलाएं हैं, जो सलावा जुडूम के दौरान नक्सल हिंसा से पीड़ित होने के बाद पुलिस की पहले एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) और जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद गोपनीय सैनिक बना दी गईं.

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