दो पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के बीच कड़ा मुकाबला, मतदाता की खामोशी ने बढ़ाई धड़कनें

खंडवा
सुशील विधानी|  एक पखवाड़े पश्चात खंडवा संसदीय क्षेत्र के लिये मत डाले जायेंगे। वैसे तो कई प्रत्याशी मैदान में है लेकिन सही मायने में टक्कर कांग्रेस एवं भाजपा के प्रत्याशियों के बीच है। दोनों ही पार्टियों के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान एवं अरूण यादव के मध्य ही मुकाबला है। दोनों ही प्रत्याशियों को अपने ही लोगों का भारी विरोध झेलना पड़ा है। खंडवा में ऐसा पहली बार हुआ, टिकिट वितरण के पहले से ही पार्टी नेता एवं कार्यकर्ता ही खुलकर विरोध में खडे हो गये। दोनों ही पूर्व अध्यक्षों का अपने ही गृहक्षेत्र में इतना भारी विरोध उनकी काबिलियत एवं कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाने को पर्याप्त है। वैसे दोनों के टिकिट की शीघ्र घोषणा से डेमेज कंट्रोल के लिये नंदू भैया एवं अरूण यादव को काफी समय मिल गया।

येनकेन प्रकरेण उपरी तौर पर तो विरोध के स्वर धीमे धीमे होते होते लुप्त हो गये हैं लेकिन विरोध में खडे नेता कार्यकर्ता पूरी निष्ठा से कार्य करेंगे। इसकी शत प्रतिशत गारंटी नहीं हैं साथ ही दोनों प्रत्याषी भी चुनाव के लिये अपने व्यक्तिगत समर्थकों को अलग अलग क्षेत्रों में तैनात कर चुके है। स्थानीय नेताओं कार्यकर्ताओं पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा रहा है। जो कि स्थिति को गंभीर बनाये हुए है। यही कारण है कि चुनावी ऊँट किस करवट बैठेगा, अभी कहना मुश्किल ही है। मतदाता की खामोशी भी प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ा रहा है|

जब कांग्रेसियों ने नंदू भैया की जय बोली…

अतीत के पन्ने पलटे जाये तो लगभग 20-22 साल पूर्व यादव खेमे के पूनम पटेल ने जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष के निर्वाचन में अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेता ठा. शिवकुमारसिंह को मात दी, तब कांग्रेसजनों द्वारा निकाले गये जुलूस में नंदू भैया जिंदाबाद के नारे भी गंुजायमान हुए। जो कि भाजपा से कांग्रेस के एक धडे द्वारा सामंजस्य बिठाकर पूनम पटेल को विजयी बनाने की नीति को उजागर कर गए। बस यही से कांग्रेस की राजनीति का पतन शुरू हुआ। एकमात्र अरूण यादव सांसद द्वारा विधायक, महापौर नहीं बना पाये।   निष्ठावान कांग्रेसजनों की उपेक्षा आज भी जारी है। कमोबेष यही स्थिति भाजपा में है, नंदू भैया के सभी पुराने सिपहसालार हाशिये पर डाल दिये गये है। नये लोगों के हाथों में बागडोर है। दोनों ही प्रत्याशी भितरघात की शंका के चलते चुनाव संचालन हेतु अपने विश्वास पात्र लोगों को ही जवाबदारी सौंप रहे है। पार्टी के पुराने सक्रिय लोग केवल नंदू भैया की जय, अरूण भाई जिंदाबाद कहने तक सीमित होते दिखाई दे रहे है।

अवधेश को हराया कांग्रेसजनों ने…

कांग्रेस के लोकप्रिय नेता अवधेश सिसोदिया विधानसभा चुनाव में अपने लोगों के कारण ही मात खा गये। यहां वीरेंद्र मिश्र के निर्दलीय चुनाव लडने से अवधेश सिसोदिया की हार की बात नहीं हो रही है। वीरेंद्र मिश्र ने तो कांग्रेस से अधिक भाजपा के वोट काटे, साथ ही चुनाव प्रचार दौरान वीरेंद्र मिश्र द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी को वोट देने की अपील की पुरानी वीडियो चलाकर कांग्रेस ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। लेकिन बुरहानपुर से स्व.षिवकुमारसिंह के निर्दलीय चुनाव लडने के कारण मतदान दिवस के कुछ दिन पूर्व ही भारी मात्रा में षिव समर्थक कांग्रेस नेता, कार्यकर्ता उनके प्रचार में बुराहनपुर चले गये तो दूसरी ओर कांग्रेस नेता स्व. ओम सिकलीगर हरसूद विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याषी किषोरी पटेल के प्रचार में अपनेटीम के साथ जुटे रहने से खंडवा से नदारद थे। यही चार पांच सौ वोट अवधेष के पक्ष में डल जाते तो वे विधायक होते।

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