‘देवता’ को बचाने सरकार से ‘संघर्ष’ कर रहे आदिवासी

दंतेवाड़ा 
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में आदिवासियों का बड़ा समूह पिछले चार दिनों से एनएमडीसी (नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन) के चेकपोस्ट को घेरे हुए है. एनएमडीसी व सरकार के खिलाफ आदिवासी सड़क पर संघर्ष करते हुए धरना दे रहे हैं. बस्तर से अलग-अलग इलाकों से 5 हजार से अधिक संख्या में पहुंचे आदिवासी अपने देवता को बचाने के लिए धरना दे रहे हैं. आदिवासियों के इस धरना प्रदर्शन को राजनीतिक दलों के साथ ही तमाम ट्रेड यूनियन और अन्य वर्ग का भी समर्थन मिल रहा है.

आदिवासी बैलाडीला के नंदग्राम (नंदराज) पहाड़ी पर खुदाई का विरोध कर रहे हैं. आदिवासियों का मानना है कि नंदग्राम पहाड़ की पूजा वे अपने कुलदेव के रूप में करते हैं, इसलिए वे उस पहाड़ की खुदाई होने नहीं दे सकते. इसको लेकर ही बीते 7 जून से सुबह तीन बजे से आदिवासियों का समूह एनएमडीसी के सामने धरना देकर प्रदर्शन कर रहा है. इस दौरान आदिवासी तीर धनूष सहित अपने पारंपरिक हथियार भी साथ रखे हैं.

संयुक्त पंचायत जन संघर्ष समिति के मंगल कुंजाम का कहना है कि जल जंगल जमीन के लिए ही आदिवासी जीते हैं. सरकार इसे ही छीनने की कोशिश कर रही है. दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर ज़िलों सहित पड़ेसी राज्य ओड़िशा और महाराष्ट्र के हज़ारों आदिवासियों के देवताओं का घर नंदराज पर्वत है और यह आदिवासियों की आस्था से जुड़ा हुआ सवाल है. हम आदिवासी किसी के भी द्वारा इस नंदराज पर्वत की खुदाई के सख़्त ख़िलाफ़ हैं.

मंगल कुंजाम कहते हैं कि जिस डिपॉजिट 13 की खुदाई का ठेका अडानी समूह की कंपनी को दिया गया है, वो हमारे देवता नंदराज की पत्नी पित्तोड़ रानी का मायका भी है. ऐसे में इस पहाड़ी का हम आदिवासियों के लिए धार्मिक महत्व है. ऐसे में इसकी खुदाई किसी को भी नहीं करने देंगे. हमारे देवताओं की इस पहाड़ी को बचाने के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं.

बस्तर की परिस्थितियों और संस्कृति को लेकर बस्तरनामा, आमचो बस्तर, लाल अंधेरा, बस्तर के जननायक समेत 14 किताबें लिख चुके राजीव रंजन प्रसाद कहते हैं बैलाडिला की सुलगन गंभीर है. सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम एनएमडीसी लि. जो कि दशकों से लौह उत्खनन कर रहा है, इसे दरकिनार कर क्षेत्र में अडानी समूह को खुली खदान दिया जाना, विरोध के स्वर उत्पन्न कर रहा है. यदि नियमगिरि का सबक नहीं लिया गया है तो बैलाडिला अधिक गंभीर सवाल खडे कर सकता है. जनजातीय क्षेत्रों में कार्य करते हुए यदि आप स्थानीय देवी-देवता, जन-मान्यता, लोक-जीवन व संस्कृति की उपेक्षा कर विकास की अपनी ही परिभाषा गढने का प्रयास करेंगे तो बैलाडिला डिपॉजिट – 13 को ले कर आरम्भ हुआ जन-प्रतिरोध स्वाभाविक है.

राजीव कहते हैं कि भावनात्मक विषयों को विकास की किसी परिपाटी में सही ठहराने का प्रावधान नहीं है. यह प्रकरण अधिक गंभीर होता जा रहा है चूंकि परोक्ष रूप से ही सही राजनीति की छाया इसपर मंडराने लगी है। राजनैतिक दलों ने नफा-नुकसान टटोलने आरम्भ कर दिये हैं. नक्सलियों ने समर्थन देते हुए न केवल पोस्टर लगाये हैं अपितु जन-भागीदारी बढाने के लिये अपने प्रभाव के क्षेत्रों से लोगों को प्रतिभागिता के लिये उकसा भी रहे हैं, जो चिंताजनक है.

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