दंतेवाड़ा उपचुनाव: विकास की आस में नक्सलियों की धमकी को नजरअंदाज कर वोट डालेंगे ये ग्रामीण!

दंतेवाड़ा
छत्तीसगढ़ विधानसभा (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) सीट पर 23 सितंबर को उपचुनाव (By-Election) के लिए वोटिंग (Voting) होनी है. इस विधानसभा क्षेत्र में ऐसे कई इलाके हैं, जिन्हें लालतंत्र का गलियारा या यूं कहें कि नक्सलगढ़ (Naxalgarh) कहा जाता है. नक्सलियों की वोट (Vote) के बदले मौत की धमकी के बावजूद इंद्रावती नदी (Indravati River) के किनारे बसे इनमें से कई गांवों के लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. पहले के चुनावों में भी ये अपने मताधिकार का प्रयोग करते रहे हैं. क्योंकि इन्हें उम्मीद है कि जीत कर आने के बाद उनका नेता इन्द्रावती नदी पर पु​ल बनवाएगा, जिससे उन्हें कहीं भी आने जाने में तकलीफ नहीं होगी. लेकिन अब तक इनके हाथ निराशा ही लगी है.

दंतेवाड़ा विधानसभा (Dantewada Assembly) क्षेत्र में 6 पोलिंग बूथ के हजारों मतदाताओं (Voters) को उम्मीद है कि इस बार जो भी नेता जितेगा, वो इन्द्रावती नदी पर पुल जरूर बनवाएगा. इसके लिए वे 5 से 10 किलोमीटर का जंगली सफर और फिर उफनती इन्द्रावती नदी को पार कर वोट करने जाएंगे. तकलीफ सिर्फ जंगली सफर और नदी ही नहीं. बल्कि नक्सलियों की वो धमकी भी है, जिसमें नक्सली वोट करने पर जान से मारने की बात कहते हैं.

दन्तेवाडा विधानसभा क्षेत्र के घोर नक्सल प्रभावित बडे करका, चेरपाल, तुम्मीरगुंडा, हांदावाडा, हीतावाडा, और पाउरनार पोलिंग बूथ के करीब 4,500 मतदाता हैं. ये मतदाता इस वजह से बेहद खास हैं. क्योंकि ये जिस इलाके के बाशिंदे हैं, उस इलाके में नक्सलियों की हुकूमत चलती है. नक्सली हमेशा चुनाव का बहिष्कार करते रहे हैं. इतना ही नहीं मतदाताओं को वोट नहीं करने का फरमान भी जारी करते हैं. लेकिन इस फरमान को नजरअंदाज कर इन 6 पोलिंग बूथ के मतदाता अपने क्षेत्र के विकास की उम्मीद लगाये हमेशा वोट करते रहे हैं.

इस इलाके के ग्रामीण मतदाता बताते हैं कि नक्सलियों की धमकी और वोट के बदले मौत के फरमान के बावजूद ये अपने घर और अपने गांव से निकलकर वोट करने इस उम्मीद के साथ आते हैं कि इन्द्रावती नदी पर एक अदद पुल का निर्माण हो जाए. इनके गांवो तक पहुंचने के लिए सड़क बन जाये. इनके गांवों में स्कूल और अस्पताल खुल जाये, मगर चुनाव जीतने के बाद इनके द्वारा चुने गये नेता हमेशा इनसे वादाखिलाफी करते रहे हैं. जिससे ग्रामीणों को अब भी आदिम युग में ही जीवन यापन की मजबूरी है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *