तीनो टरबाइन से 24 घंटे में 14.40 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन

शिवपुरी
 नरवर में सिंध नदी पर स्थित मड़ीखेड़ा डैम के पास स्थित विद्युत उत्पादन इकाई में लगीं तीनों टरबाइन 24 घंटे बिजली बना रही हैं और हर दिन यहां 14.40 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है। बीते वर्ष जहां विद्युत संयत्र इकाई सितंबर में शुरू हुई थी, वहीं इस बार अगस्त में ही बिजली बनना शुरू हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिले के पावर जनरेशन सिस्टम में बनने वाली यह बिजली शिवपुरी को न मिलकर दूसरे जरूरतमंद क्षेत्रों में सप्लाई की जाती है, जिसका कंट्रोल रूम जबलपुर में है।

मड़ीखेड़ा डैम पर स्थित विद्युत उत्पादन इकाई (पॉवर जनरेशन सिस्टम) में बिजली का उत्पादन तभी होता है, जब डैम से सिंचाई के लिए या फिर गेट खोलकर पानी रिलीज किया जाता है। बीते वर्ष भले ही बारिश का आंकड़ा औसत से अधिक पहुंच गया था, लेकिन डैम में पानी देर से आया था और सितंबर में गेट खुलने पर ही बिजली का उत्पादन शुरू हो सका था, जबकि इस वर्ष 16 अगस्त को डैम के गेट खुलते ही विद्युत उत्पादन इकाई की तीनों टरबाइन चलने लगीं और 24 घंटे बिजली का उत्पादन करने लगीं। इस बार अभी तक शिवपुरी में 582.63 मिमी बारिश हुई है, लेकिन सिंध नदी के कैचमेंट एरिया में अच्छी बारिश होने की वजह से डैम के गेट जल्दी खोलने पड़े। गेट खोलते ही पावर जनरेशन सिस्टम की तीनों टरबाइन ने लगातार बिजली बनाना शुरू कर दिया। चूंकि 16 अगस्त के बाद दो दिन तक गेट बंद रहने के बाद उन्हें फिर खोलना पड़ा, इसलिए बिजली उत्पादन भी दो दिन रुकने के बाद फिर जब गेट खुले तो बिजली बनना शुरू हो गई।

शिवपुरी की बिजली जिले को नहीं
मड़ीखेड़ा विद्युत संयत्र इकाई में बनने वाली बिजली को शिवपुरी जिले के लिए नहीं दिया जाता। मड़ीखेड़ा में बनने वाली बिजली को ट्रांसमिशन लाइन के माध्यम से करैरा भेजा जाता है और फिर वहां से उसे जिस क्षेत्र में जरूरत होती है, वहां के लिए सप्लाई दी जाती है, लेकिन इसका निर्धारण जबलपुर स्थित बिजली कंपनी के हैडऑफिस से होता है। चूंकि अधिक दूरी के किसी जिले में बिजली देने में लाइन लॉस होता है, इसलिए आसपास के जिले जैसे दतिया, ग्वालियर में डिमांड आने पर वहां शिवपुरी की बिजली को दिया जाता है।

बीते वर्ष से अधिक बिजली उत्पादन की उम्मीद
चूंकि पिछले वर्ष सितंबर के शुरुआती सप्ताह में बिजली का उत्पादन हुआ था, तब भी एक साल में 8 करोड़ 90 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ था, जबकि इस साल अगस्त खत्म होने से पूर्व ही बनने वाली बिजली का आंकड़ा 1 करोड़ 34 लाख यूनिट तक पहुंच गया है, जबकि सिंध के कैचमेंट एरिया में बारिश का सिलसिला रुका नहीं है तथा तीन दिन से डैम के गेट खुले हुए हैं। सितंबर में भी बारिश का क्रम यदि ऐसे ही जारी रहा तो इस बार पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक बिजली का उत्पादन होगा।

ऐसे बनती है बिजली
डैम से जो पानी छोड़ा जाता है, वो आगे जाकर विद्युत संयंत्र इकाई के एक ऊंचे स्थान से नीचे गिरकर आगे बढ़ता है। जब पानी तेज रफ्तार में नीचे गिरता है, तो उससे टरबाइन उतनी रफ्तार में ही घूमती है और उनके घूमने से होने वाले घर्षण से बिजली का उत्पादन होता है। जब गेट खोले जाते हैं, तब यह टरबाइन चलती है और जब फसलों की सिंचाई के लिए पानी रिलीज किया जाता है, तब भी बिजली का उत्पादन होता है, लेकिन सबसे अधिक बिजली गेट खुलते समय ही बनती है, क्योंकि उस समय पानी का फ्लो अधिक तेज होता है।

पॉवर जनरेशन सिस्टम की फैक्ट फाइल
20 मेगावाट की 3 टरबाइन हैं
20 हजार यूनिट बिजली बनाती है प्रत्येक टरबाइन एक घंटे में
14.40 लाख यूनिट बिजली बन रही है चौबीस घंटे में
8.90 करोड़ यूनिट बिजली बनी थी पिछले वर्ष
1.34 करोड़ यूनिट बिजली इस वर्ष अभी तक बनी

उनका कहना है

बीते वर्ष तो उत्पादन सितंबर में शुरू हुआ था, लेकिन इस बार अभी तक 1.34 करोड़ यूनिट बिजली बनाई जा चुकी है। तीनों टरबाइन 24 घंटे बिजली बना रही हैं, जिससे प्रति घंटा 60 हजार यूनिट बिजली बन रही है। यहां से बिजली करैरा हाईटेंशन लाइन में भेजी जाती है, फिर जबलपुर से मिलने वाले आदेश के अनुरूप बिजली डिस्ट्रीब्यूट की जाती है।

हर्ष गुप्ता, ईई विद्युत संयत्र इकाई मड़ीखेड़ा, शिवपुरी

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