तन्खा ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल , कांग्रेस में खलबली
भोपाल
इन दिनों मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ भी ठीक नही चल रहा है। खास करके कांग्रेस में जमकर घमासान मचा हुआ है। आए दिन नेता अपनी ही सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे है।कोई अफसरों की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है तो कोई मंत्रियों के कामकाज पर। अब कांग्रेस राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के दिग्गज नेता विवेक तन्खा ने कमलनाथ सरकार की मंशा पर सवाल उठाए है। सांसद के सवाल उठाने पर कांग्रेस में खलबली मच गई है। अपनों की बयान बाजी अब सरकार के लिए चुनौती बनती जा रही है।
खदानो के संचालन में पारदर्शिता की आवश्यकता। ८० प्रतिशत गिट्टी खदानो का धंधा राजनेताओं के गिरिफ़त में। रॉयल्टी की चोरी १ आम बात। जिस प्रकार गत १५ वर्षों में नर्मदा एवम् अन्य नदियों का दोहन हुआ यह सार्वजनिक शर्मिंदगी का प्रतीक है। @OfficeOfKNath @digvijaya_28 pic.twitter.com/EE2JGiQCzq
— Vivek Tankha (@VTankha) August 24, 2019
खदानो के संचालन में पारदर्शिता की आवश्यकता। ८० प्रतिशत गिट्टी खदानो का धंधा राजनेताओं के गिरिफ़त में। रॉयल्टी की चोरी १ आम बात। जिस प्रकार गत १५ वर्षों में नर्मदा एवम् अन्य नदियों का दोहन हुआ यह सार्वजनिक शर्मिंदगी का प्रतीक है। @OfficeOfKNath @digvijaya_28 pic.twitter.com/EE2JGiQCzq
— Vivek Tankha (@VTankha) August 24, 2019
दरअसल, तन्खा ने ट्वीट के माध्यम से नाराजगी जाहिर की है। तन्खा ने कहा है कि आवेदन के माध्यम से गिट्टी क्रेशर की खदानें सरकार देना चाहती है जबकी हाईकोर्ट ने नीलामी करके खदाने देने के आदेश दिए है । तन्खा ने सरकार को खदान संचालन में पारदर्शिता से काम करने की बात कही ।साथ ही आरोप लगाते हुए कहा कि 80% गिट्टी खदाने तो राजनेताओं के कब्जे में है।खास बात ये है कि उन्होंने ये ट्वीट सीएम कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय को भी टैंग किया है।
विवेक तन्खा ने ट्वीट कर लिखा है कि खदानो के संचालन में पारदर्शिता की आवश्यकता है। 80 प्रतिशत गिट्टी खदानो का धंधा राजनेताओं के गिरफ्त में है।। रॉयल्टी की चोरी एक आम बात है। जिस प्रकार गत 15 वर्षों में नर्मदा एवम् अन्य नदियों का दोहन हुआ यह सार्वजनिक शर्मिंदगी का प्रतीक है।
बता दे कि हाईकोर्ट ने सरकार को क्रेशर गिट्टी की खदानों को नीलाम करने के आदेश दिए है, लेकिन राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन लगाई है। राज्य सरकार ने तर्क दिया है कि ऐसा करने से खदानों पर उद्योगा का कब्जा होगा।अगर आवेदन के माध्यम से खदाने दी जाती है तो यह स्थानीय लोगों औऱ आदिवासियों के रोजगार में सहायक होंगी।