डायरेक्टर ने फिल्म बनाने में लगा दिए 14 साल
नई दिल्ली
बॉलीवुड में वैसे तो कई बार स्वर्णिम काल आया. कई बार ऐसा कहा गया कि ये बॉलीवुड का सबसे बेहतरीन दौर है. लेकिन फिर भी असल मायनों में बॉलीवुड ने इतिहास आज से 60 साल पहले रचा था जब रिलीज हुई थी सबसे बड़ी फिल्म मुगल-ए-आजम. जी हां, ये उस दौर की या कह लीजिए बॉलीवुड की अब तक की सबसे बड़ी और सफल फिल्म है. मुगल-ए-आजम का निर्देशन किया था के आसिफ ने जिनका 14 जून को यानी आज जन्मदिन है.
के आसिफ बॉलीवुड के उन डायरेक्टर्स में शुमार हैं जिन्होंने अपने करियर में सिर्फ 2 फिल्में बनाई- एक थी फूल और दूसरी मुगल-ए-आजम. अब के आसिफ कोई बहुत मंझे हुए डायरेक्टर नहीं थे, उन्होंने फिल्म बनाने का कोई ऐसा खास कोर्स भी नहीं किया था. के आसिफ के पास था सिर्फ एक विजन, एक सोच जो वो बड़े पर्दे पर बिखेरना चाहते थे.
14 साल में बनी थी मुगल-ए-आजम
के आसिफ को वो मौका मिला फिल्म मुगल-ए-आजम की वजह से, क्योंकि इस फिल्म में उनकी कला का पूरा निचोड़ था. इस एक फिल्म के जरिए उन्होंने दिखा दिया था कि कैसे समय से आगे सोचा जाता है, कैसे बड़ी सोच को बड़े परिणाम में तब्दील किया जा सकता है. लोगों को जानकर हैरानी होगी कि के आसिफ ने मुगल-ए-आजम को बनाने में 14 साल लगा दिए थे. जी हां, उन्होंने अपनी जिंदगी के 14 साल सिर्फ मुगल-ए-आजम को बनाने में निकाल दिए थे.
कहा जाता है कि के आसिफ ने इस फिल्म का काम आजादी से पहले ही शुरू कर दिया था. जब देश में अंग्रेजों को राज था, उसी समय के आसिफ ने ये फिल्म बनाने का सोचा था. उन्हें मुगल-ए-आजम बनाने का आइडिया आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘अनारकली' को देख आया था. उन्होंने मुगल-ए-आजम को बनाने में पानी की तरह पैसा बहाया था.
जिस जमाने में 5 से 10 लाख में पूरी फिल्म बन जाया करती थी, तब के आसिफ ने करोड़ों में खेलने का सोचा था. उन्होंने मुगल-ए-आजम 1.5 करोड़ रुपये में बनाई थी. सिर्फ यही नहीं उन्होंने अपनी इस महत्वकांक्षी फिल्म के लिए सबसे बेहतरीन कलाकार और आर्टिस्ट चुने थे. एक तरफ अगर फिल्म में दिलीप कुमार और मधुबाला को लिया गया तो वहीं संगीत के लिए म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद से संपर्क साधा था. वहीं फिल्म के एक गाने में उस जमाने के बेहतरीन सिंगर गुलाम अली साहब ने अपनी आवाज दी थी.
पानी की तरह बहाया पैसा
वैसे कहा जाता है कि उस समय गुलाम अली साहब मुगल-ए-आजम के साथ खुद को जोड़ना नहीं चाहते थे. उन्होंने मना करने के लिए के आसिफ को यहां तक कह दिया था कि वो 25000 बतौर फीस लेंगे. अब शायद गुलाम अली साहब ये भूल गए थे कि के आसिफ इस फिल्म के लिए पानी की तरह पैसे बहाने को तैयार थे. उन्होंने उसी समय गुलाम अली साहब को 10000 रुपये एंडवास दे दिए थे. बता दें कि उस जमाने में लता मंगेशकर और रफी जैसे गायको को 300 से 400 रुपये मिलते थे.
के आसिफ का ये जुनून, उनकी ऐसी दीवानगी ही तो थी जिसकी वजह से उन्होंने मुगल-ए-आजम को साकार कर दिखाया. के आसिफ को इस क्लासिक फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला और नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी. लेकिन इस सब के बावजूद भी उनका करियर सिर्फ फिल्मों तक सीमित रह गया और साल 1971 में 48 की उम्र में निधन हो गया.