ट्रेन में सीट नहीं मिली तो खरीदी कार और गाजियाबाद से पहुंच गए गोरखपुर

 गोरखपुर                                          
इसे कोरोना का खौफ कहें या जागरूकता। लॉकडाउन में गाजियाबाद में फंसा युवक भीड़ देखकर परिवार को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। संक्रमण के खतरे के बीच सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ने से उसने ट्रेन की बजाय पूरी जमा पूंजी लगाकर कार खरीदी और उसमें परिवार को लेकर सोमवार को गोरखपुर अपने घर पहुंचा। यहां सुरक्षित पहुंचने के बाद कहा कि भले ही तीन साल की हाड़तोड़ मेहनत की कमाई कार में लग गई लेकिन अब काफी सुकून महसूस हो रहा है।

पीपीगंज क्षेत्र के कैथोलिया गांव के लल्लन गाजियाबाद में पेंट-पॉलिश का काम करते है। वह पत्नी के साथ वहीं रहता है। लॉकडाउन हो गया तो काम-काज ठप हो गया। इससे वहां काफी परेशानी होने लगी। लल्लन ने बताया कि किसी तरह 15 अप्रैल तक तो काट लिया लेकिन उसके बाद से रोजाना यही देखते कि कब बस या ट्रेन सेवा शुरू होगी। बस तो नहीं शुरू हुई लेकिन तीन मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेन शुरू हो गई। स्टेशन पर कई बार गया लेकिन जब उसमें भीड़ देखी तो माथा ही चकरा गया। गाड़ी पूरी तरह से ठसाठस। लल्लन ने बताया कि भीड़ देख उसकी हिम्मत न पड़ी। इसी बीच सामान्य ट्रेनों के चलने की सूचना मिली। लगातर तीन दिन प्रयास करने के बाद जब कन्फर्म बर्थ नहीं मिली तो विकल्प तलाशने लगा। आखिरकार कार खरीदने की सूझी।

तीन साल में 1.90 लाख रुपये बैंक में बचाकर रखा था। सारा पैसा बैंक से निकाला और 28 मई को कार बाजार से डेढ़ लाख रुपये की सेंकेण्ड हैंड कार खरीद ली। कार खरीदने के बाद गोरखपुर आने की तैयारी शुरू कर दी। बाजार में कुछ पैसा बकाया था उसे लिया और सामान की पैकिंग की। इसके बाद वहां से 31 मई को सुबह 11 बजे गोरखपुर के लिए प्रस्थान कर गया। 14 घंटे की यात्रा के बाद अपने गांव रामपुर कैथोलिया पहुंच गया। अब निश्चय किया है कि कभी भी अपना गांव छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगा। गोरखपुर में ही काम करुंगा। 

ड्राइवर लेकर आया
लल्लन को कार अच्छे से चलाने नहीं आती थी तो उसने गाजियाबाद में ही एक ड्राइवर रख लिया। सोमवार को यहां पहुंचने के बाद लल्लन ने बताया कि बसें शुरू हो जाने से अब ड्राइवर को भेजने में कोई दिक्कत नहीं है।

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