जिस पर चीन से है विवाद, लद्दाख में पैंगोंग झील के बीच क्या है फिंगर 4

नई दिल्ली 
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के बीच तनाव को करीब एक महीना हो गया है. इस मसले पर भारत और चीन के मिलिट्री कमांडर्स के बीच लद्दाख के चुशूल में मीटिंग होनी है. अब तक 8 मीटिंग्स फेल हो चुकी हैं और 6 जून को होने वाली इस मीटिंग से पहले भी तनाव बढ़ाने वाली गतिविधियां लगातार हो रही हैं.

छह जून की बातचीत से पहले भारत सरकार को सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से लद्दाख में चीनी गतिविधियों की पूरी रिपोर्ट मिल गई है. सुरक्षा एजेंसियों ने जानकारी दी है कि पूर्वी लद्दाख के अलग अलग सेक्टरों में चीनी सेना ने कहां अपने सैनिकों को तैनात किया है. कहां भारी हथियार रखे गये हैं. लेकिन इससे पहले जानते हैं पैंगोंग त्सो झील के आसपास क्या चल रहा है.

सीमा पर क्या हैं हालात

असल में, फिंगर 4 और 8 के बीच चीन और भारत की सेना गश्त करती है. आम तौर पर भारतीय सेना फिंगर 8 तक गश्त करती है, और इसी रास्ते में चीनी सेना भी गश्ती करती है. लेकिन कई बार दोनों देशों की सेना की टुकड़ियां आमने-सामने होती हैं और इनके बीच झड़प हो जाती है. कोरोना वायरस संकट को देखते हुए भारतीय सेना से कहा गया था कि वो अपनी गतिविधियों को सीमित रखे ताकि कोरोना का संक्रमण न फैले.

मगर इसी का फायदा उठाते हुए चीन की सेना फिंगर 4 के पास आकर बैठ गई और यही पर विवाद शुरू हो गया है. चीनी सेना भारतीय सेना के जवानों को फिंगर 4 से आगे जाने नहीं दे रहे हैं. भारत की मांग है कि चीनी सेना वापस चली जाए. यानी फिंगर 4 के पास दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है. नक्शे को अंतिम रूप नहीं दिए जाने की वजह से दोनों देशों में तनाव बना हुआ है.

क्या है फिंगर 4 और 8

इस बीच, फिंगर 4 और फिंगर 8 को लेकर तनाव बना हुआ. आखिर ये फिंगर्स क्या हैं. इससे समझते हैं. पिछले कुछ सालों से चीन की सेना पैंगोंग झील के किनारे सड़कें बना रही है. 1999 में जब पाकिस्तान से करगिल की लड़ाई चल रही थी उस समय चीन ने मौके का फायदा उठाते हुए भारत की सीमा में झील के किनारे पर 5 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई थी.
 
झील के उत्‍तरी किनारे पर बंजर पहाड़ियां हैं. इन्हें स्थानीय भाषा में छांग छेनमो कहते हैं. इन पहाड़ियों के उभरे हुए हिस्‍से को ही भारतीय सेना 'फिंगर्स' कहती है. भारत का दावा है कि एलएसी की सीमा फिंगर 8 तक है. लेकिन वह फिंगर 4 तक को ही नियंत्रित करती है.

फिंगर 8 पर चीन का पोस्ट है. वहीं, चीन की सेना का मानना है कि फिंगर 2 तक एलएसी है. छह साल पहले चीन की सेना ने फिंगर 4 पर स्‍थाई निर्माण की कोशिश की थी, लेकिन भारत के विरोध पर इसे गिरा दिया गया था.

पेट्रोलिंग के लिए चीन की सेना हल्‍के वाहनों का उपयोग करती है. गश्‍त के दौरान अगर भारत की पेट्रोलिंग टीम से उनका आमना-सामना होता है तो उन्‍हें वापस जाने को कह दिया जाता है. क्योंकि दोनों देशों की पेट्रोलिंग गाड़ियां उस जगह पर घुमा नहीं सकते. इसलिए गाड़ी को वापस जाना होता है.

भारतीय सेना के जवान पैदल गश्ती भी करते हैं. अभी के तनाव को देखते हुए इस गश्ती को बढ़ाकर फिंगर 8 तक कर दिया गया है. मई में भारत और चीन के सैनिकों के बीच फिंगर 5 के इलाके में झगड़ा हुआ है. इसकी वजह से दोनों पक्षों में असहमति है.

चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को फिंगर 4 से आगे बढ़ने से रोक दिया था. बताया जाता है कि चीन के 5,000 जवान गलवान घाटी में मौजूद हैं. सबसे ज्यादा दिक्कत होती है पैंगोंग लेक के आसपास. यहीं पर दोनों देशों के जवानों के बीच भिड़ंत हो चुकी है.
 
क्या है एलएसी

एलएसी तीन सेक्‍टर्स में बंटी है. पहला अरुणाचल प्रदेश से लेकर सिक्किम तक. दूसरा, हिमाचल प्रदेश और उत्‍तराखंड का हिस्‍सा. तीसरा है लद्दाख. भारत, चीन के साथ लगी एलएसी करीब 3,488 किलोमीटर पर अपना दावा जताता है, जबकि चीन का कहना है यह बस 2000 किलोमीटर तक ही है.

एलएसी दोनों देशों के बीच वह रेखा है जो दोनों देशों की सीमाओं को अलग-अलग करती है. दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर अपने-अपने हिस्‍से में लगातार गश्‍त करती रहती हैं. पैंगोंग झील पर अक्सर झड़प होती है. 6 मई से पहले यहीं पर चीन और भारत के जवान भिड़े थे. झील का 45 किलोमीटर का पश्चिमी हिस्‍सा भारत के नियंत्रण में आता है जबकि बाकी चीन के हिस्‍से में है.

पूर्वी लद्दाख एलएसी के पश्चिमी सेक्‍टर का निर्माण करता है जो कि काराकोरम पास से लेकर लद्दाख तक आता है. उत्‍तर में काराकोरम पास जो 18 किमी लंबा है, यहीं पर देश की सबसे ऊंची एयरफील्‍ड दौलत बेग ओल्‍डी है. अब काराकोरम सड़क के रास्‍ते दौलत बेग ओल्‍डी से जुड़ा है.

दक्षिण में चुमार है जो पूरी तरह से हिमाचल प्रदेश से जुड़ा है. पैंगोंग झील, पूर्वी लद्दाख में 826 किलोमीटर के बॉर्डर के केंद्र के एकदम करीब है. 19 अगस्‍त 2017 को भी पैंगोंग झील पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी.

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