जितनी ज्यादा पढ़ाई, उतनी बेरोजगारी- अब सरकार ने भी माना, सच निकले लीक हुए आंकड़े

नई दिल्ली 
केंद्र सरकार की तरफ से बेरोजगारी के आंकड़े जारी कर दिए गए हैं। सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार देश में साल 2017-18 के दौरान बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी रही। मंत्रालय ने यह भी स्वीकार किया कि जनवरी में बेरोजगारी दर को लेकर जो रिपोर्ट छपी थी वो सही थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में 1972-73 के बाद बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।

इन आंकड़ों से एक और तस्वीर सामने आ रही है। यह तस्वीर है कि लोग अपनी शिक्षा के अनुसार से बेरोजगार है यानि अधिक पढ़ेलिखे लोगों में बेरोजगारी की दर अधिक है। इस बात को आंकड़ों से समझें तो साल 2017 में शहरों में निरक्षर लोगों के बीच बेरोजगारी की दर 2.1 फीसदी थी वहीं सेकेंडरी या इससे अधिक शिक्षा प्राप्त किए लोगों में यह दर बढ़कर 9.2 फीसदी थी।

शहर में 0.8 फीसदी निरक्षर महिलाएं ही बेरोजगार थीं जबकि शहरों में ही सेकेंडरी या इससे अधिक पढ़ी लिखी महिलाओं में बेरोजगारी की दर करीब 20 फीसदी थी। रोजगार नहीं मिल पाने का यह अंतर शहरी शिक्षित महिलाओं और ग्रामीण अशिक्षित महिलाओं में कही अधिक था।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की तरफ से पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे रिपोर्ट शुक्रवार को जारी की गई। इसमें बताया गया कि शहरी महिलाओं में बेरोजगारी की दर 4 फीसदी बढ़ी है। इसमें मिडिल स्कूल तक शिक्षा हासिल करने वाली और सेकेंडरी या इससे अधिक शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं को शामिल किया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में भी बेरोजगारी का पैटर्न लगभग यही था।

इन आकंड़ों से जो एक अन्य बात सामने आई है वह यह कि बेरोजगारी न सिर्फ शिक्षा के स्तर के आधार पर बढ़ी है बल्कि यह समय के साथ भी बढ़ी है। NSO के आंकड़ों में यह 2004-05, 2009-10 और 2011-12 के आंकड़ों के बारे में भी बताया गया। हालांकि, इसमें कहा गया कि पिछले आंकड़ों की तुलना को 2017-18 के आंकड़ों के साथ नहीं की जा सकती है। इसके पीछे नए बेरोजगारी दर की गणना करने के तरीके में बदलाव का हवाला दिया गया।

आंकड़ों के आधार पर शहरों में निरक्षर लोगों मे बेरोजगारी की दर 1.7 फीसदी थी, वहीं सेकेंडरी या इससे अधिक पढ़े लिखे लोगों में यह दर 10.5 फीसदी थी। वहीं मिडिल स्कूल तक पढ़े 5.7 फीसदी लोग बेरोजगार थे। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकोनॉमी के सीईओ महेश व्यास ने कहा, एक पीढ़ी पहले संगठित क्षेत्र में बिना ग्रेजुएशन के नौकरी मिलना मुश्किल था। आज संगठित क्षेत्र में नौकरी पाने की योग्यता कम हुई है।

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