जानिए क्या है शिवराज सिंह चौहान सरकार के दौरान हुआ ई-टेंडरिंग घोटाला

भोपाल 
मध्य प्रदेश का बहुचर्चित ई-टेंडरिंग घोटाला एक बार फिर चर्चा में है. शिवराज सिंह चौहान की सरकार के दौरान हुए इस घोटाले में कमलनाथ सरकार ने 5 विभागों के अधिकारियों और तत्कालीन ज़िम्मेदार नेताओं के खिलाफ भोपाल में एफआईआर दर्ज कराई गई है. जल निगम, लोकनिर्माण विभाग, पीआईयू, रोड डेवलेपमेंट और जल संसाधन विभाग पर टेंडर में गड़बड़ी के आरोप लगे हैं. इन मामलों में 7 कंपनियों पर फर्जीवाड़ा कर टेंडर लेने का आरोप है.

दरअसल, शिवराज सरकार ने अलग-अलग विभागों के ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 2014 में ई-टेंडर की व्यवस्था लागू की थी, जिसके लिए एक निजी कंपनी से पोर्टल बनवाया गया. तब से मध्यप्रदेश में हर विभाग इसके माध्यम से ई-टेंडर करता आया.

टेंडर की यह प्रक्रिया ऑनलाइन थी लेकिन इसमें बोली लगाने वाली कंपनियों को पहले ही सबसे कम बोली का पता चल जाता था. और यहीं से इसमें घोटाले की शुरुआत हुई. ई-टेंडर प्रक्रिया में 3000 करोड़ के घोटाले की बात सामने आ रही है, लेकिन चूंकि यह प्रक्रिया 2014 से ही लागू है जिसके तहत तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये के टेंडर दिए जा चुके हैं. ईओडब्ल्यू के अनुसार घोटाला 3 हजार करोड़ का बताया रहा है. जनवरी से मार्च 2018 के दौरान टेंडर प्रोसेस हुए थे. मई में घोटाले की जांच शुरू हुई थी.

कुल मिलाकर 2014 से अब तक करीब तीन लाख करोड़ रुपये के ई-टेंडर संदेह के दायरे में आ गए हैं. आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले की जांच भी शुरू की थी. लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान यह मामला धीमा हो गया था. कमलनाथ की सरकार ने ऐलान किया कि इस मामले कि फिर जांच होगी.

इसी क्रम में अब नया खुलासा हुआ है. ईओडब्ल्यू का कहना है कि ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ की गई. 9 टेंडरों के सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ कर कंपनियों को लाभान्वित किया, जिनमें जल निगम के 3, लोक निर्माण विभाग के 2, जल संसाधन विभाग के 2, मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम का 1 और लोक निर्माण विभाग की पीआईयू का 1 टेंडर शामिल है.

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