जल संकट से बचने तैयार है रोडमैप, जरूरत है अमल की

रायपुर
छत्तीसगढ़ की नदियों में पानी तो है पर उसके लिए समुचित पहल शासकीय तौर पर नहीं होने से कई जिले ऐेसे हैं जिन्हे गर्मी में भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। सूबे में 38 साल तक शासकीय सेवा दे चुके पूर्व प्रशासनिक अधिकारी जीएस राणा ने जल संरक्षण संवर्धन और आने वाले 20 सालों के पेयजल संकट को ध्यान में रखते हुए एक रिपोर्ट तैयार की है जिसे उन्होने रायपुर संभागायुक्त और कलेक्टर धमतरी को भी भेजा है। जो कि बालोद, दुर्ग, धमतरी, रायपुर, बेमेतरा एवं बलौदाबाजार के नदी किनारे वाले गांव की प्यास बूझाने में मददगार साबित होंगे। गंगरेल से तान्दुला जलाशय में पानी ले जाने की योजना जो लंबित है उसे पुर्नजीवित किया जाना भी जरूरी है।

रिपोर्ट के मुताबिक राजाराम पठार के ऊपर से खारुन के उद्गम स्थल कंकालीन तक पानी पहुंचाकर गुरुर धमतरी, कुरुद, अभनपुर धरसींवा पाटन, सिमगा के आगे तक स्टापडेम बनाकर इन क्षेत्रों के प्यास को बुझाया जा सकता है। महादेवघाट से लेकर खारुन नदी के उद्गम स्थल तक नदी के किनारे सड़क बनाकर वृक्षारोपण कर स्टापडेम एवं एनिकट की संख्या बढ़ाकर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से खारुन की 120 किमी की लंबी नदी में सौ से अधिक गांव को पेयजल एवं सिंचाई के लिए नई ऊर्जा दी जा सकती है। गंगरेल बांध में पानी रोकने के बाद महानदी में बनाए गए एनीकट और बैराजों के उपरांत भी औसतन प्रतिवर्ष 25 से 30 टीएमसी (16 हजार एमसीएम)पानी ओड़िशा को चला जाता है और हम गर्मी के दिनों में इन 6 जिलों के कई गांव में भू-जल स्तर गिरने के कारण प्यासे हो जाते है।

जानकारी के अनुसार रिपोर्ट में गंगरेल बांध से बरसात के दिनों में पानी को खारुन नदी में डालने तथा तांदुला जलाशय तक पानी पहुंचाकर 6 जिलों में हरियाली प्रसार योजना भूजल बढ़ाने का काम सिंचाई क्षमता का विकास होने का संकेत दिया गया है। इस समय राज्य के 19 जिलों में जल स्तर बहुत नीचे चला गया है।पानी प्रबंधन के इस परियोजना में अनुमान है कि सरकार सभी जिलों के जनप्रतिनिधियों, सीएसआर मद एवं अपने मद का उपयोग करेगी तो लगभग 3 से 4 सौ करोड़ में यह एक बहुउपयोगी योजना तैयार हो जायेगी और खारुन नदी की दारुन व्यथा भविष्य के जलसंकट से भी मुक्ति पा जायेगी। 

राणा की रिपोर्ट के आधार पर जो नक्शा उपलब्ध है उसके अनुसार बरसात के दिनों में गंगरेल में 50-50 एचपी के दो पंप के माध्यम से पाइप के द्वारा ओना कोना, राजाराम पठार होकर एनएच पार करते हुए साढ़े तीन किमी खारुन नदी के उद्गम स्थल पर कंकालीन में एक डेम बनाकर खारुन में पानी आपूर्ति की जाए और वहां से महादेवघाट अमलेश्वर तक लगभग 15 से 20 एनीकट स्टापडेम बनाकर धमतरी, कुरुद, अभनपुर, धरसींवा, पाटन, गुरुर और अरकार के क्षेत्रों के गांव के जल स्तर को बढ़ा सकते हैं। इसमें यह भी अपेक्षा की गई है कि कंकालीन डेम के पास से बडघूम सियादेवी रानीमाई से होकर अगर पानी को तांदुला जलाशय में भी आपूर्ति किया जाए तो उसका लाभ तांदुला जलाशय से नीचे चारामा और कांकेर तरफ भी भू जल स्तर बढ़ेगा और उक्त क्षेत्र में भी 50 किमी का जो जंगल है जहां 20 हजार एकड़ लगानी जमीन पानी के लिए जूझ रही है इस 50 गांव का भी जीवन सुधर जाएगा। 

महानदी के पानी को साढ़े तीन किमी खारुन नदी से होते हुए लगभग 17 किमी तांदुला में लिप्त किया जाए तो पानी की बरबादी से भी बचेंगे और तांदुला गुरुर के ऊपरी क्षेत्र का सतही जलस्तर भी बढ़ेगा और बचा हुआ पानी वापस महानदी में भी जाएगा। गंगरेल से तादूंला सियादेही, रानीमाई और गंगामैया तक एक पर्यटन केंद्र भी विकसित होगा। 

रिपोर्ट के अनुसार खारुन नदी में यदि 15 टीएमसी पानी की प्रवाह  होगी तो लगभग 115 किमी तक इस नदी में 12 मासी पानी उपलब्ध होगा और नदी के किनारे सड़क बनाकर वृक्षारोपण कर दिया जाए तो यह पर्यटन के रुप में भी विकसित होगा। तांदुला और खारुन में वर्षा ऋतु के अतिरिक्त जलों को ले जाकर उक्त 6 जिलों में भविष्य में भूजल स्तर को भी बढ़ा सकते हैं और जल संकट से भी मुक्ति पा सकते हैं। तांदुला में पानी भर लेने से कसवाही और मुडखुसरा के निकट से माहुद होते हुए वापस पानी महानदी में मिलेगा जो फिर वापस पीछे से गंगरेल में ही आएगा और इस प्रयोग में उक्त 50 किमी के क्षेत्र में जो जंगल की जमीन है उसके भी अच्छे दिन आ सकते हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार खारुन नदी में ही पानी का भराव हो जाए और 15 से 20 स्टापडेम एनीकट और हो जाए तो फिर धमतरी से रायपुर तक ही नदी के दोनो तरफ लगभग 50 गांव में जल का स्तर बढ़ेगा फसल की मात्रा बढ़ेगी जल संकट से भी मुक्ति पाएंगे। रोडमैप तो तैयार है जरूरत है सरकार को इसे अमल में लाने की है।

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