चूक ! हिन्दी नहीं थी अनिवार्य, अपलोड हुआ था पुराना मसौदा

 नई दिल्ली

नई शिक्षा नीति में तीन भाषा फॉर्मूला के तहत हिंदी को पूरे देश में अनिवार्य करने को लेकर उत्पन्न विवाद की वजह अधिकारियों की लापरवाही थी। दरअसल अधिकारियों ने शिक्षा नीति का पुराना मसौदा अपलोड कर दिया था।

मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि बीते दिसंबर महीने में मीडिया रिपोर्ट्स में नई शिक्षा नीति में हिंदी को अनिवार्य करने की खबरें सामने आई थी। इसके बाद ही तत्कालीन एचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के निर्देश पर इस प्रावधान को हटा दिया गया था। खास बात ये है कि बीते शुक्रवार को मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पदभार ग्रहण करने के बाद मंत्रालय कवर करने वाले कुछ पत्रकारों को भी इसकी सॉफ्ट कॉपी मुहैया कराई गई थी जिसकी एक प्रति ‘हिन्दुस्तान' संवाददाता के पास भी उपलब्ध है।

हालांकि, अगले दिन मंत्रालय की वेबसाइट पर नई शिक्षा नीति के पुराने ड्राफ्ट को ही अपलोड कर दिया गया। इसके बाद हिंदी की अनिवार्यता के मुद्दे पर हंगामा मचने के बाद दिसंबर में ही तैयार संशोधित रिपोर्ट को फिर से अपलोड किया गया। सूत्र ने कहा कि एक गंभीर लापहवाही है। न सिर्फ वेबसाइट पर गलत रिपोर्ट अपलोड की गई, बल्कि पुराने मसौदे की प्रति भी बड़े पैमाने पर वितरित किया गया। 

सियासी विवाद का कारण
हिंदी को अनिवार्य करने संबंधी मसौदा अपलोड होने के बाद दक्षिण के राज्यों में इसका विरोध शुरू हो गया। तमिलनाडु की द्रमुक सहित तमाम पार्टियों ने केंद्र पर हिंदी को थोपने का आरोप लगाया। केंद्र सरकार में भी सहयोगी अन्नाद्रमुक ने भी इसपर नाराजगी जताई। 

केंद्र को देनी पड़ी सफाई
विवाद के मद्देनजर केंद्र सरकार को बयान जारी कर सफाई देनी पड़ी कि हिंदी को अनिवार्य नहीं किया गया है। नवनियुक्त विदेशमंत्री एस.जयशंकर और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बयान जारी कर कहा कि यह केवल मसौदा है और सभी पक्षों की सहमति के बाद ही कोई फैसला होगा।

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