चांद तारों को छूने की आशा-आदिवासी छात्रा ने टॉयलेट क्लीनिंग मशीन बनाई।

बिन पिता की आदिवासी बच्ची ने हाथ से चलने वाला टॉयलेट क्लीनर बनाकर राष्ट्रीय इन्सपायर्ड अवार्ड,पाकर गांव का नाम रोशन किया।

किसी ने सही ही कहा है कि अभाव में प्रतिभा जन्म लेती है यह कहावत बिछुआ के आदिवासी कन्या शाला में छटवी की छात्रा के ऊपर सही बैठती है इस स्कूल में पढ़ने वाली सुलोचना ककोडिया छात्रा हर क्षेत्र में अव्वल रहती है शिक्षक बताते है कि इस पढ़ाई के साथ साथ जो भी काम सौंपा जाता है उसे बखूबी से निभाती है और स्कूल में इसे छात्राओ के बीच प्रधानमंत्री का दर्ज दिया गया है
जिज्ञासु प्रवत्ति के कारण इसने स्कूल के द्वारा लगाए जाने वाले विज्ञान मेले में एक मॉडल बनाया जिसमे नाम मात्र के पैसों से आज के युग के लिए जरूरमंद मशीन बना डाली जो टॉयलेट के गंदगी कम पानी मे ब्रश कर साफ करती है साथ ही दीवारों वॉर फर्श की सफाई भी इसी मशीन से हो जाती है केवल टूल्स बदलना पड़ता है और इस सफाई के कार्य मे कम पानी मे अच्छी सफाई भी हो जाती है बच्ची के द्वारा बनाई गई टॉयलेट मशीन के मॉडल ने पूरे देश मे नम्बर वन रैंक पर है और इसे इन्सपायर्ड अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है
इस स्कूल में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है इसके पीछे भी स्कूल की प्रधानमंत्री सुलोचना ही वजह है और स्वछता से सम्बंधित नारे जगह जगह दिखाई देते है ।

बच्ची का कहना है कि इस मॉडल के विषय का आईडिया उसके मन मे तब आया ,जब स्कूल में सफाईकर्मी द्वारा टॉयलेट की अच्छी से सफाई नही करते थे तब उस छात्रा को लगा कि ऐसी मशीन बनाई जानी चाहिए जिससे
लोग बिना संकोच किये टॉयलेट की खुद अच्छे से सफाई कर सके।
मोदी के स्वच्छता मिशन को भले ही मंत्री और अधिकारी पलीता लगा रहे हो लेकिन यह आदिवासी छात्रा पीएम के स्वच्छता मिशन को नई दिशा दे रही है और पीएम से मांग कर रही है कि यह मशीन जल्दी बनना चाहिए।

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