चयन समिति में BSA से लेकर डायर प्राचार्य तक होते हैं शामिल, अनामिका के नए दावे ने खड़े किए कई सवाल

 लखनऊ 
यूपी के चर्चित अनामिका शुक्ला फर्जी टीचर केस में मंगलवार को नए खुलासे के बाद अधिकारियों और शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। गोंडा के बीएसए आफिस में अनामिका शुक्ला नाम की महिला पहुंची और उसका दावा है कि उसके शैक्षिक प्रमाण पत्रों के आधार पर ही कई जगह पर फर्जी नौकरियां की जा रही हैं। 

अनामिका ने बताया कि उसने 2017 में आवेदन किया था लेकिन उसके बाद कभी नौकरी नहीं की। ऐसे में अब सवाल उठने लगा किस तरह प्रमाण पत्रों की फोटो काॅपी के आधार पर नौकरी मिल सकती है। अभी भी इस केस में ऐसे कई सवाल है जिनकी पड़ताल पुलिस करेगी। 

ये उठ रहे सवाल : 

– मूल दस्तावेजों का सत्यापन क्यों नहीं कराया गया ? 

– ओरिजनल प्रमाण पत्र क्यों नहीं देखे गए ? 

– कई जिलों में अनामिका अनुपस्थित थी तो वेतन कैसे दिया गया ? 

– जिन स्कूलों में अनामिका की तैनाती थी वहां लड़कियां रहती हैं, ऐसे में अगर अनामिका अनुपस्थित चल रही थी तो कभी सवाल क्यों नहीं खड़े हुए। 

–  इस पूरे प्रकरण में कहीं कोई बड़ा भर्ती रैकेट तो काम नहीं कर रहा ?  

– नियुक्ति प्रक्रिया में जिले के सभी बड़े अधिकारी शामिल होते हैँ, ऐसे में सभी से चूक कैसे हो सकती है ? 

कमेटी में ये होते हैं शामिल :

कस्तूरबा आवासीय विद्यालय में संविदा के आधार पर 11 महीने 29 दिन की होती है नियुक्ति होती है। चयन कमेटी के अध्यक्ष डायट प्राचार्य होते हैं। बीएसए सदस्य सचिव, जिलाधिकारी द्वारा नामित अधिकारी, मनोवैज्ञानिक आदि कमेटी में होते हैं। यहां मूल दस्तावेज जमा नहीं होते, काउंसिलिंग के बाद वापस हो जाते हैं।

हो रही कार्रवाई : 

विजय किरन आनंद, महानिदेशक, बेसिक शिक्षा के मुताबिक जिलों में एफआरईआर दर्ज की जा रही है। वहां पर पुलिस और जिलाधिकारी कार्रवाई कर रहे हैं। प्रमाणपत्रों के मिलान और जांच पूरी होने के बाद ही उत्तरदायित्व तय किया जाएगा।

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