घरों को यूनिक आईडी देने की नगर निगम की योजना हुई फ्लॉप
रायपुर
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मकानों को अपनी पहचान के लिए अभी लंबा इंतज़ार करना होगा. क्योंकि घरों को यूनिक आईडी देने की नगर निगम की योजना फेल हो गयी है. निगम ने इसके लिए काम कर रही एजेंसी का टेंडर भी रद्द कर दिया है. रायपुर नगर निगम की सीमा में बने घरों को उनके नंबर पर ढूंढना मुश्किल ही नहीं नामूमकिन है, क्योंकि राजधानी बनने के इतने साल बाद भी रायपुर नगर निगम यहां के घरों को उनकी पहचान ही नहीं दे पाया है. कई साल बाद मकान को स्थायी नंबर देने की योजना पर एक बार फिर पानी फिर गया है.
दरअसल रायपुर के 2 लाख 93 हजार से ज्यादा घरों में लगने वाली यूनिक आईडी का टेंडर रद्द हो गया है. इसकी वजह काम करने वाली एजेंसी और नगर निगम के बीच नियम-शर्तों को लेकर एक राय नहीं पाना है. बताया जा रहा है कि कंपनी इस काम में लंबे समय तक मेंटेनेंस के लिए तैयार नहीं थी. यही वजह है कि निगम को आखरी में ये फैसला लेना पड़ा. महापौर प्रमोद दुबे का कहना है कि मकानों के यूनिक आईडी का कांसेप्ट हमने निकाला था. इसे हमने पीपीपी मोड पर किया था. सिंगल टेंडर होने के कारण इसे हम अप्रूव नहीं कर पाए. इसे जल्द करने पर हम काम करेंगे.
मकानों को नंबर बांटने का सिलसिला राजधानी में 1986 यानि करीब 32 साल पहले बंद कर दिया गया था. तब तक जिन मकानों को नंबर आवंटित किये गये थे वे 10 से 20 साल तक चले और फिर वो भी बंद हो गये. उसके बाद घरों को बीना नंबर के ही ढूंढना पड़ता है. इसलिए नगर निगम ने एक बार फिर सभी घरों को यूनिक आईडी देने का फैसला लिया था जिस पर करीब 3 करोड़ रूपए का खर्च आ रहा था. निगम कमिश्नर रजत बंसल का कहना है कि अब इस प्रोजेक्ट में संशोधन कर नया टेंडर जारी किया जाएगा. निगम चाहती है कि निजी कंपनी ही इस प्रोजेक्ट में आए और वो पीपीपी मोड पर काम करे.
राजधानी में कुछ कॉलोनियों को छोड़ दिया जाए तो करीब 90 फीसदी मकानों में नंबर का उल्लेख ही नहीं होता जबकि ये सबसे जरूरी होता है. घरों की यूआईडी का एक फायदा ये भी होता कि निगम अफसर आसानी से घरों से टैक्स वसूल कर सकते थे लेकिन रायपुर नगर निगम में फिलहाल ये दूर की कौड़ी नज़र आ रही है.