गेहूं की रिकॉर्ड खरीद – “दाद तो देना पड़ेगी साहब”

 भोपाल

ठीक मार्च महीने के पहले मध्यप्रदेश के किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने को मिल रही थी चिंता जायज भी थी जब अफवाहें अपने चरम पे थी कि इस बार मंडियों में गेहूं किस प्रकार तौला जाएगा। 'कोविड 19 की भयावह तस्वीरों ने प्रदेश के अन्नदाता किसानों को सचमुच चिंता में डाल दिया था कि गेहूं तौलना तो दूर खरीदेगा कौन ? व्यापारी क्या बोली लगाने आएंगे? या इस परिस्थिति का फायदा उठा कर कहीं फसल के मूल्य से भी समझौता न करना पड़ जाए'

लेकिन खुशखबरी इंतज़ार कर रही थी बुधनी तहसील के ग्राम नांदनेर के किसान घनश्याम सिंह राजपूत ने फोन पर बताया कि उनका खलिहान में पड़ा गेहूं न सिर्फ मध्य प्रदेश सरकार ने खरीद लिया बल्कि वो अब मूंग की फसल पर भी बहुत ज्यादा उत्साहित है। मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों को उम्मीद से ज्यादा दिया है सभी किसान खुश है, इस अवधि में 129 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूं समर्थन मूल्य पर उपार्जित किया गया है। प्रदेश के लिए यह ऑल टाइम रिकॉर्ड है। साथ ही समर्थन मूल्य पर गेहूं उपार्जन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश पंजाब को पछाड़ते हुए देश में पहले स्थान पर आ गया।

कोविड-19 की भयावह तस्वीरों के बीच सत्ता सम्हालने और इन सबके बीच गेहूं की फसल की चिंता कर लेना ही काफी नही था शायद, जो अचंभे में डालते हुए शिवराज सरकार ने आउट ऑफ दी बॉक्स जाकर गेहूं की खरीदारी में प्रदेश को पहले नम्बर पर ला कर खड़ा कर दिया और पंजाब जैसे राज्य को भी पीछे छोड़ दिया। इतनी चुस्त-दुरुस्त सरकारी प्रणाली वाकई उनके राजनैतिक इच्छा शक्ति को न सिर्फ बतलाती है बल्कि उन लोगों का भी मुँह बंद कर देती है जो गेहूं की फसल को खलिहानों में ही सड़ जाने की आशंकाओं में दुबले हो रहे थे। वाकई 'इस बात पर सरकार को दाद देना तो बनता है' शब्दो की कृपणता और आशंकाओं के पीछे छिप जाने जैसी विधाओं के बावजूद ये रिकॉर्ड तो कबीले तारीफ है। ग्राम बख्तरा के महेंद्र चौहान किसान है और गेंहू की फसल को लेकर चिंतित थे' फोन पर बात करने पर बताया कि बारदाने न होने की अफवाहों ने चिंतित कर दिया था क्योंकि साल भर की मेहनत का अच्छा खासा हिस्सा गेहूं की फसल पर लग जाता है लेकिन इस बार तमाम चिंताओं के बावजूद किसानों से न सिर्फ समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीद लिया गया बल्कि सामान्य दिनों जैसी भी कोई समस्या नही आई। शिवराज सरकार का वापस आ जाना वरदान से कम नहीं है।

इस बार कोविड-19 के संक्रमण की वजह से गेहूं की खरीद 25 मार्च की जगह 15 अप्रैल से शुरू की गई थी। इस देरी से किसानों में मायूसी फैल गई थी और कई तरह की अटकलों से बाजार घनघनाने लगा था, कोरोना संक्रमण के कारण शारीरिक दूरी का खासा ध्यान रखना और संक्रमण न फैले ये भी एक बड़ा टास्क था जिसे बखूबी निभाया गया। किसी एक खरीदी केंद्र पर ज्यादा भीड़-भाड़ न हो और अराजकता जैसी स्थिति से बचने के लिए चार हजार 529 केंद्र बनाकर खरीद की गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगातार गेहूं उपार्जन की समीक्षा की और 23 मार्च से लगातार 75 मैराथन बैठकें लेते रहे।

एक व्यवहारिक चुनौती गेहूँ का सुरक्षित भंडारण किया जाना था जो कि स्‍पष्ट आदेशों और पक्की योजना के कारण सरकारी अमले ने आखिर ये भी कर ही दिखाया।

ज्यादा खरीदी केंद्र, ज्यादा खरीदारी- एक्सीक्यूशन की भाषा में इसे होरिजेंटल एक्सपैंशन कहा जाता है जिसमें किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए साधनों का फैलाव कर देते हैं और कम समयावधि में संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल करते है। इस तकनीक से रिकॉर्ड खरीदी में बहुत ज्यादा फायदा हुआ और ये एक रिकॉर्ड बन पाया।

सरकार का वर्टिकल ढांचा इस बात को भांप गया था कि मंदी और आवागमन बंद होने के कारण पिछले साल की तुलना में कम अवधि में खरीद करनी होगी। इसके लिए उपार्जन केंद्रों की संख्या 3545 से बढ़ाकर 4,529 की गई। सबसे बड़ी चुनौती सात दिन में किसानों को भुगतान की व्यवस्था करना थी जो समय पर हो गई, इस प्रकार लॉकडाउन के दौरान भी किसानों को कोई परेशानी नहीं हुई।

सराहना इस बात की, की जाना चाहिए कि 'सरकारी अमले ने इस संख्या को सम्हालने की योजना भी तैयार कर रखी थी' और किसान को भुगतान किए जाने वाली रकम में भी कोई कमी नहीं आने दी गई। इस योजना के मल्टीपल लेयर की ठोस तैयारी और उसकी मॉनिटरिंग में कहीं भी कोई खबर नहीं पाते कि कहीं किसी भी प्रकार का हल्ला-गुल्ला हुआ हो।

14 लाख 22 हज़ार किसानों को ऐसे संकट के समय लगभग 25 हज़ार करोड़ का भुगतान किया गया जो इस बात की पुष्टि करता है कि कम से कम प्रदेश की ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में लिक्विडिटी की कोई समस्या नहीं हुई।

बिना किसी ठोस कार्ययोजना और 'टास्क के लिए एकाउंटीबिलिटी निश्चित किये बैगर आप इस तरह के नतीजों की उम्मीद नहीं कर सकते। कोविड-19 के संक्रमण का खतरा और बाकी उथल-पुथल के बीच फोकस बनाये रखा गया और बहुत तगड़े फ़ॉलोअप्स के ही नतीजे हैं जो एक रिकॉर्ड के रूप में सामने आए हैं' कहावत सही है कि 'अवसर थाली में सजा कर नहीं मिलते' उन्हें तो बस पहचान कर सही दिशा देनी होती है। मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान की सतत् मॉनिटरिंग और फालोअप ने मध्यप्रदेश को देश में नम्बर वन बनाया।

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